माँ कल्याण करो

माँ शक्तिस्वरूपा माँ जगदम्बा
माँ विन्ध्यवासिनी कल्याण करो
दे सद्बुद्धि अपनी संतति को
फिर मानवता को अवतार करो...

 कन्या जन्म पर होते मायूस
वही राखी पर उदास हो जाते हैं
कुटिल दृष्टि रखते हैं मासूमों पर
और नवरात्रि भोज को कन्या तलाशते हैं...

माँ दोहरा चरित्र धरा है सबने
अब तुम ही कुछ न्याय करो
धरो रूप फिर तुम दुर्गा का
फिर चण्ड-मुण्ड का संहार करो....

माँ दुखी बहुत मन होता है
जब मानव मानवता खोता है
कुचली जाती हैं जब नन्ही कलियाँ
माँ सच...ये मन बहुत ही रोता है...

रिश्तों की मर्यादा त्यागी
मानव अब "आदम" बन बैठा है
"श्रीराम" रहे न अब बाकी
हर मानव अब रावण बन बैठा है...

माना इस गहरे दलदल में
अब गंगावतरण असंभव है
पर तू जो चाहे तो सब मुमकिन
इस कलयुग में भी सतयुग संभव है...

माँ नष्ट कर दो उन भावों को
जो रिश्तों को दूषित करते हैं
माँ नष्ट करो उन वासनाओं को
जो मानव की मर्यादा हरते हैं....

है अंतिम लक्ष्य माँ तेरे चरणों में
जो सत्कर्मों से ही मिल पायेगा
जो होगा निर्मल तन- मन का
बस वही स्नेह तेरा पा पायेगा ....

            महानवमी के पावन पर्व पर माँ का आह्वान और ध्यान करते हुए बस यही प्रार्थना है कि माँ पुन: धरती पर अवतरित होकर असत्य, पाप, अन्याय, अत्याचार और हर बुरे कर्म, बुरे भाव का समूल नाश करके मानवता,  प्रेम,  सत्य और सुसंस्कारों का सृजन करो......माँ जगतजननी सबका कल्याण करो.....जय माँ 

रचयिता
श्वेता मिश्र,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय किशोरपुर,
विकास क्षेत्र-अमाँपुर,
जनपद- कासगंज।

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