आयी शरद
अभिनन्दन है आयी शरद
प्रेम पर्व लायी शरद
सौम्य हुआ दिनकर,
हरषा हरसिंगार है।
हो मुदित खिल चाँदनी
नभ थल में करे प्रसार है।
परछाइयाँ बढ़ने लगीं
दिवस लघु-लघु हो रहे।
हैं प्रफुल्लित रश्मियाँ
कर रहीं प्रेम विस्तार है।
शीतलता पवन ने ली पहन
छायी धरती में बहार है।
बत्तखों-हंसो के संग धूप
करती जल में विहार है।
हो रही सुगन्धित है बेला,
कलियों की ओढ़ी काया है।
तट यमुना का बाँसुरी बजे
फिर रास महोत्सव आया है।
सम्मोहित हैं मयंक किरणें
मधुर सुधारस बरस रहा
है हुलसित जगत जीवन
जन मानस हरषाया हैं।
सब नेह पाश में बँधे हुए
व्याकुल है संगीत सरस
कान्हा है रचाते महारास
ये प्रेम पर्व लायी शरद।
रचयिता
प्रेम पर्व लायी शरद
सौम्य हुआ दिनकर,
हरषा हरसिंगार है।
हो मुदित खिल चाँदनी
नभ थल में करे प्रसार है।
परछाइयाँ बढ़ने लगीं
दिवस लघु-लघु हो रहे।
हैं प्रफुल्लित रश्मियाँ
कर रहीं प्रेम विस्तार है।
शीतलता पवन ने ली पहन
छायी धरती में बहार है।
बत्तखों-हंसो के संग धूप
करती जल में विहार है।
हो रही सुगन्धित है बेला,
कलियों की ओढ़ी काया है।
तट यमुना का बाँसुरी बजे
फिर रास महोत्सव आया है।
सम्मोहित हैं मयंक किरणें
मधुर सुधारस बरस रहा
है हुलसित जगत जीवन
जन मानस हरषाया हैं।
सब नेह पाश में बँधे हुए
व्याकुल है संगीत सरस
कान्हा है रचाते महारास
ये प्रेम पर्व लायी शरद।
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र - बावन,
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