कागजमल के आँसू

कागजमल जी अपने घर में
बैठे आँसू बहा रहे थे।
अपने जीवन की हालत पर
बार-बार वे पछता रहे थे।
मैंने पूछा कगजमल जी
क्यों ऐसा यह हाल बनाया।
बोले नये जमाने में तुम
सबने मुझको बहुत सताया।
मैंने तुमको डॉक्टर, मास्टर
और न जाने क्या क्या बनाया।
मुझ से ही पढ़ लिखकर लोगों ने
दुनिया में है नाम कमाया।
काम निकल जाने पर मैं
कचरे में फेंका जाता हूँ।
पैरों में कुचला जाता हूँ
जिन्दा जला दिया जाता हूँ।
मेरी सबसे यह विनती है
इतना न करो मेरा अपमान।
मैने सबका नाम बढ़ाया
मुझको दो थोड़ा सम्मान।
मुझे कबाड़ी को दे दो तो
मैं फिर से कागज बन जाऊँगा।
कॉपी और किताबें बनकर
फिर से तुम्हारे काम आऊँगा।
अगर इस तरह मिलकर तुम सब
मुझे नष्ट करते जाओगे।
कागज नया बनाने को
कितने पेड़ों को कटवाओगे?
                 
रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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