बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
खिलती हुई कलियाँ हैं बेटी
माँ बाप का दर्द समझती हैं बेटी
घर को रौशन करती हैं बेटी
बेटी कुदरत का है उपहार
इसको जीने का दो अधिकार
त्याग की सूरत है बेटी
ममता की मूरत है बेटी
संस्कारों की जान है बेटी
हर घर की तो शान है बेटी
बेटी तो जग की जननी
हमें रक्षा अब इसकी करनी
बेटी बचाओ अपना देश बढ़ाओ
" बेटी जो अपनी माँ से
अपनी व्यथा कहती है"
पेंसिल रहने दो हाथों में
चौका बेलन न थमाओ माँ
मुझे स्कूल ड्रेस में सजने दो
घुंघट चुन्नी न ओढ़ाओ माँ
न हाथ रंगो हल्दी मेहंदी से
इन्हें स्याही से रंग जाने दो माँ
नींव बनूँगी दो-दो घर की
पैरों पर खड़ी हो जाने दो माँ
असंभव को संभव बनाओ
अपनी बेटी को आगे बढ़ाओ
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"
रचयिता
सिम्मी सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय-घईसरा,
विकास क्षेत्र-खजनी,
जिला-गोरखपुर।
माँ बाप का दर्द समझती हैं बेटी
घर को रौशन करती हैं बेटी
बेटी कुदरत का है उपहार
इसको जीने का दो अधिकार
त्याग की सूरत है बेटी
ममता की मूरत है बेटी
संस्कारों की जान है बेटी
हर घर की तो शान है बेटी
बेटी तो जग की जननी
हमें रक्षा अब इसकी करनी
बेटी बचाओ अपना देश बढ़ाओ
" बेटी जो अपनी माँ से
अपनी व्यथा कहती है"
पेंसिल रहने दो हाथों में
चौका बेलन न थमाओ माँ
मुझे स्कूल ड्रेस में सजने दो
घुंघट चुन्नी न ओढ़ाओ माँ
न हाथ रंगो हल्दी मेहंदी से
इन्हें स्याही से रंग जाने दो माँ
नींव बनूँगी दो-दो घर की
पैरों पर खड़ी हो जाने दो माँ
असंभव को संभव बनाओ
अपनी बेटी को आगे बढ़ाओ
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"
रचयिता
सिम्मी सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय-घईसरा,
विकास क्षेत्र-खजनी,
जिला-गोरखपुर।
Bahut sundar likhti hai ap
ReplyDeleteपेंसिल रहने दो हाथों में इस कविता की रचियता में हूँ,
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