वृक्ष

वृक्ष धरा का गहना यारों,
करता सब पे उपकार
शमी नीम पीपल वट,
पूजते देखो सब नर- नार ।

हरे वृक्ष से चलती साँसें,
छाया दे फलदार ,
सूखे दरख्त है लाखों के,
समझो ना  बेकार ।

डाली,टहनी,पात-पात में,
मिले औषधि अम्बार ,
असाध्य रोग भी भागे,
तो लौटे  न इक  बार ।

पुष्पित होते बचपन देख,
 तरूवर हुए  निहाल ,
महक उठी है मधुवन सारी,
 खिल उठी हर  डाल ।

हर दम देता छांव पथिक को,
दूर करे थकान,
धन्य होते हैं शरीर जब,
मरते को मिले मुस्कान ।

रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।

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