पंच परमेश्वर
पंच परमेश्वर का काव्य रुपान्तरण
जुम्मन अलगू थे दो मित्र ,
दोनों प्रेम से रहते थे।
उन दोनों का प्रेम गहरा ,
सभी लोग कहते थे ।
जुम्मन की थी खाला एक,
विधवा और निसंतान थी।
इस दुनिया में अकेली ,
वो तो बूढ़ी जान थी।
साथ पत्नी के जुम्मन भी ,
बार बार उसे समझाता।
तुम अकेली रहती खाला ,
मेरे मन को न भाता।
घर आकर रहो तुम मेरे,
सेवा किया करेंगे हम ।
बैठे - बैठे ही तुमको ,
रोटी पानी देंगे हम ।
बूढ़ी खाला उनको सुनकर,
कर न सकी वो इंकार ।
जायदाद उनके नाम लिखकर,
रहने को हो गयी तैयार ।
कुछ दिन आवभगत में बीते,
फिर होने लगा तिरस्कार ।
दिन रात ताने वो सुनती ,
कभी सुनती उनकी फटकार।
परेशान हो गयी खाला तब ,
जब रोटी पर भी बन आयी ।
सही निर्णय लेने को ,
पंचायत गाँव में बैठायी।
निर्णय लेने हेतु सरपंच का ,
आसन वहाँ पर खाली था ।
इस आसन पर बैठे कौन ,
यह प्रश्न बड़ा ही बवाली था ।
सरपंच चुनने की गुत्थी को ,
खाला ने ही सुलझाया ।
अलगू को सरपंच बनाने का ,
विचार तब उसके मन में आया ।
खाला के निर्णय से जुम्मन ,
मन ही मन में हरषाया ।
जीत अब उसकी है निश्चित ,
यही विचार मन को भाया ।
बैठ गया अलगू जब ,
सरपंच के ऊँचे आसन पर।
खाला ने आप बीती सुनायी ,
उसकी आयी आँखे भर ।
आप बीती सुनकर खाला की ,
अलगू का आसन डोल गया ।
सरपंच परमेश्वर सम होता है ,
निष्पक्षता का भाव बोल गया ।
अलग रहेगी खाला अब ,
खर्चा जुम्मन उठाएगा ।
अपमान कोई कर न सके ,
सम्मान उनका बढ़ाएगा
फैसला सुनकर अलगू का ,
मन हुआ बड़ा ही भारी ।
शत्रु बना है मित्र मेरा ,
ये है उसकी मक्कारी।
बदला कैसे लेगा वह ,
करने लगा वो विचार ।
वह समय भी आ गया,
जब खत्म हो गया इन्तजार।
अलगू बैलों की जोड़ी एक,
मोल ले आया था ।
दैवयोग से एक बैल ने ,
छोड़ दी जग की माया ।
एक अकेले बैल से ,
करूँगा अब क्या काम।
समझू साहू खरीद ले गये ,
उधार किया था दाम ।
बिन चारे बिन पानी के ,
काम बहुत ही करवाया ।
भूख प्यास से तड़प तड़पकर,
जीवन भी न जी पाया ।
दिन महीने कई बीत गये ,
दाम नही चुकाते थे ।
अलगू जब भी दाम माँगते,
मुर्दा बैल बताते थे ।
उन दोनों का झगड़ा देख ,
लोगों ने भी समझाया था ।
दोनों ही निर्णय कर लो ,
पंचायत मार्ग बतलाया था ।
समझू बोले पंच तो मैं ,
जुम्मन को ही मानूँगा ।
जो भी फैसला वो कर ले ,
सिर माथे मैं लगाऊँगा ।
नाम सुनकर जुम्मन का ,
अलगू निराश होकर बैठ गये ।
स्वीकार करूँगा निर्णय मैं ,
भाग्य मानकर बैठ गये ।
आसन पाकर पंच का ,
जुम्मन को बड़ा ही हर्ष हुआ।
निर्णय तो अब होकर रहेगा,
वो भी मेरा दिया हुआ ।
धीरे-धीरे मन में उसके ,
काले बादल हटने लगे ।
भाव जिम्मेदारी के अब,
बिजली जैसे चमकने लगे ।
लोगों की बातें बंद हुई ,
जब निर्णय देना शुरू किया ।
बैल मरा है केवल इसलिए ,
क्योंकि चारा पानी बंद किया ।
समझू देगा पूरा मोल ,
जो बैल का उसने उधार किया
अलगू आँखे भर लाया ,
जुम्मन ने ज्यों ही निर्णय दिया ।
पंच परमेश्वर की जय जय के ,
जयकारे अब तो लगने लगे ।
दोनों मित्रों के दिलों से ,
मैले साफ होने लगे।
लिपट गये गले से दोनों ही ,
आँसू अब बहाते हैं ।
रहेंगे मित्र अब सदा ,
दिल को यूँ हरषाते हैं ।
जुम्मन अलगू थे दो मित्र ,
दोनों प्रेम से रहते थे।
उन दोनों का प्रेम गहरा ,
सभी लोग कहते थे ।
जुम्मन की थी खाला एक,
विधवा और निसंतान थी।
इस दुनिया में अकेली ,
वो तो बूढ़ी जान थी।
साथ पत्नी के जुम्मन भी ,
बार बार उसे समझाता।
तुम अकेली रहती खाला ,
मेरे मन को न भाता।
घर आकर रहो तुम मेरे,
सेवा किया करेंगे हम ।
बैठे - बैठे ही तुमको ,
रोटी पानी देंगे हम ।
बूढ़ी खाला उनको सुनकर,
कर न सकी वो इंकार ।
जायदाद उनके नाम लिखकर,
रहने को हो गयी तैयार ।
कुछ दिन आवभगत में बीते,
फिर होने लगा तिरस्कार ।
दिन रात ताने वो सुनती ,
कभी सुनती उनकी फटकार।
परेशान हो गयी खाला तब ,
जब रोटी पर भी बन आयी ।
सही निर्णय लेने को ,
पंचायत गाँव में बैठायी।
निर्णय लेने हेतु सरपंच का ,
आसन वहाँ पर खाली था ।
इस आसन पर बैठे कौन ,
यह प्रश्न बड़ा ही बवाली था ।
सरपंच चुनने की गुत्थी को ,
खाला ने ही सुलझाया ।
अलगू को सरपंच बनाने का ,
विचार तब उसके मन में आया ।
खाला के निर्णय से जुम्मन ,
मन ही मन में हरषाया ।
जीत अब उसकी है निश्चित ,
यही विचार मन को भाया ।
बैठ गया अलगू जब ,
सरपंच के ऊँचे आसन पर।
खाला ने आप बीती सुनायी ,
उसकी आयी आँखे भर ।
आप बीती सुनकर खाला की ,
अलगू का आसन डोल गया ।
सरपंच परमेश्वर सम होता है ,
निष्पक्षता का भाव बोल गया ।
अलग रहेगी खाला अब ,
खर्चा जुम्मन उठाएगा ।
अपमान कोई कर न सके ,
सम्मान उनका बढ़ाएगा
फैसला सुनकर अलगू का ,
मन हुआ बड़ा ही भारी ।
शत्रु बना है मित्र मेरा ,
ये है उसकी मक्कारी।
बदला कैसे लेगा वह ,
करने लगा वो विचार ।
वह समय भी आ गया,
जब खत्म हो गया इन्तजार।
अलगू बैलों की जोड़ी एक,
मोल ले आया था ।
दैवयोग से एक बैल ने ,
छोड़ दी जग की माया ।
एक अकेले बैल से ,
करूँगा अब क्या काम।
समझू साहू खरीद ले गये ,
उधार किया था दाम ।
बिन चारे बिन पानी के ,
काम बहुत ही करवाया ।
भूख प्यास से तड़प तड़पकर,
जीवन भी न जी पाया ।
दिन महीने कई बीत गये ,
दाम नही चुकाते थे ।
अलगू जब भी दाम माँगते,
मुर्दा बैल बताते थे ।
उन दोनों का झगड़ा देख ,
लोगों ने भी समझाया था ।
दोनों ही निर्णय कर लो ,
पंचायत मार्ग बतलाया था ।
समझू बोले पंच तो मैं ,
जुम्मन को ही मानूँगा ।
जो भी फैसला वो कर ले ,
सिर माथे मैं लगाऊँगा ।
नाम सुनकर जुम्मन का ,
अलगू निराश होकर बैठ गये ।
स्वीकार करूँगा निर्णय मैं ,
भाग्य मानकर बैठ गये ।
आसन पाकर पंच का ,
जुम्मन को बड़ा ही हर्ष हुआ।
निर्णय तो अब होकर रहेगा,
वो भी मेरा दिया हुआ ।
धीरे-धीरे मन में उसके ,
काले बादल हटने लगे ।
भाव जिम्मेदारी के अब,
बिजली जैसे चमकने लगे ।
लोगों की बातें बंद हुई ,
जब निर्णय देना शुरू किया ।
बैल मरा है केवल इसलिए ,
क्योंकि चारा पानी बंद किया ।
समझू देगा पूरा मोल ,
जो बैल का उसने उधार किया
अलगू आँखे भर लाया ,
जुम्मन ने ज्यों ही निर्णय दिया ।
पंच परमेश्वर की जय जय के ,
जयकारे अब तो लगने लगे ।
दोनों मित्रों के दिलों से ,
मैले साफ होने लगे।
लिपट गये गले से दोनों ही ,
आँसू अब बहाते हैं ।
रहेंगे मित्र अब सदा ,
दिल को यूँ हरषाते हैं ।
रचनाकार
अर्चना रानी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुरीदापुर,
शाहाबाद, हरदोई।
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