मिशन शिक्षण सवांद
नवाचार को मिशन बनाया,
अलख जगा दी ज्योति की।
खेल- खेल में बात सिखा दी,
हमको अपनी पोथी की।
आओ हम तुम से कुछ सीखें,
और कुछ सीखो तुम हमसे।
कितने साल बीत गए यूँ ही,
तुम चुप बैठे हो कब से।
शिक्षण में आज सुधार करें,
आत्म -प्रकाशित प्राण करें।
मिशन बना दें शिक्षण को,
नित उसका ही संधान करें।
वर्षों की परिपाटी छोड़ें,
भय-दण्ड की लाठी तोड़ें।
ऊब-उदासी से मुँह मोड़ें,
नूतनता का संचार करें।
फूलों की इस बगिया को,
नवाचार के जल से सींचे।
इनके कोमल मन में भी,
इन्द्रधनुष सतरंगी खींचे।
रचयिता
प्रदीप तेवतिया,
हिन्दी सहसमन्वयक,
विकासक्षेत्र-सिम्भावली,
जनपद-हापुड़।
अलख जगा दी ज्योति की।
खेल- खेल में बात सिखा दी,
हमको अपनी पोथी की।
आओ हम तुम से कुछ सीखें,
और कुछ सीखो तुम हमसे।
कितने साल बीत गए यूँ ही,
तुम चुप बैठे हो कब से।
शिक्षण में आज सुधार करें,
आत्म -प्रकाशित प्राण करें।
मिशन बना दें शिक्षण को,
नित उसका ही संधान करें।
वर्षों की परिपाटी छोड़ें,
भय-दण्ड की लाठी तोड़ें।
ऊब-उदासी से मुँह मोड़ें,
नूतनता का संचार करें।
फूलों की इस बगिया को,
नवाचार के जल से सींचे।
इनके कोमल मन में भी,
इन्द्रधनुष सतरंगी खींचे।
रचयिता
प्रदीप तेवतिया,
हिन्दी सहसमन्वयक,
विकासक्षेत्र-सिम्भावली,
जनपद-हापुड़।
Good👍👍
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया कविता है,सर जी।
ReplyDeleteBhut sundar sir
ReplyDeleteVery nice 👍
ReplyDeleteVery nice poem sir
ReplyDeleteक्या बात है, शानदार
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteकतई जहर!
ReplyDeleteअतुलनीय कविता
ReplyDeleteसिक्षक के मन की बात निकाल दी
आप को नमन
अतुलनीय
ReplyDeleteगजब
ReplyDeleteBahut hi Sundar Kavita bh sir ji
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