हौसला
उठो-जागो
फिर आगे बढ़ो,
सुनो मंजिल के
आह्वान को ।
समस्त शक्तियाँ
जगत की तुममें,
पहचानो, छू लो
आसमान को ।।
सपने देखो
ऊँचे-ऊँचे ,
अरुणिमा की
जीवनी पढ़ लो ।
कमियों को
औजार बना,
जैसा चाहो
जीवन गढ़ लो ।।
भय-संशय के
भ्रम को तोड़ो,
तोड़ो मिथ्या
उर बंधन को ।
करीलों का
चक्कर छोड़ो,
अब गले लगाओ
चंदन को ।।
पहला कदम
आगे तो बढ़ा,
बाधाएँ सब
चीत्कार करें ।
दिखा दो
निज क्षमता को,
भू का कण-कण
सत्कार करे ।।
रचयिता
फिर आगे बढ़ो,
सुनो मंजिल के
आह्वान को ।
समस्त शक्तियाँ
जगत की तुममें,
पहचानो, छू लो
आसमान को ।।
सपने देखो
ऊँचे-ऊँचे ,
अरुणिमा की
जीवनी पढ़ लो ।
कमियों को
औजार बना,
जैसा चाहो
जीवन गढ़ लो ।।
भय-संशय के
भ्रम को तोड़ो,
तोड़ो मिथ्या
उर बंधन को ।
करीलों का
चक्कर छोड़ो,
अब गले लगाओ
चंदन को ।।
पहला कदम
आगे तो बढ़ा,
बाधाएँ सब
चीत्कार करें ।
दिखा दो
निज क्षमता को,
भू का कण-कण
सत्कार करे ।।
रचयिता
अशोक गुप्त 'नवीन'
(स0अ0/प्रभारी प्रधानाध्यापक)
प्रा0 वि0 टड़वा रामबर
विकास क्षेत्र- रामकोला
जनपद- कुशीनगर।
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