बचपन की यादें
कोई लौटा दे हमें वो प्यारा सा बचपन।
वो कागज की नाव वो पीपल की छाँव।
वो सावन का झूला वो गुड़ियों संग खेला।
बहुत याद आता है मेरा सखियों से अनबन।
कोई लौटा दे वो मेरा प्यारा सा बचपन।
बारिश की बूँदों में छमछम नहाना।
बिजली चमकने पर डरकर सहम जाना।
वो पढ़ना-पढ़ाना वो परीक्षा की घड़ियाँ।
हमे याद आती है वो गुरुजी की छड़ियाँ।
समर्पित है उन पर मेरा सारा ये जीवन।
माँ की ममतामयी आँचल में छिपना।
मिट्टी के खिलौने की दुनिया बसाना।
लताओं के गहने बनाकर सजाना।
अपनी सी लगती है वो धरती वो गगन।
कोई लौटा दे मेरा वो प्यारा सा बचपन।
गुड्डा व गुड़ियों की शादी रचाना।
गुड़िया के रुठने पर उसको मनाना।
आँगन में खेलती थी वह नन्हीं सी तनमन।
कोई लौटा दे मेरा वो प्यारा सा बचपन।।
रचयिता
शशिबाला,
इं0 अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सेमरा चन्द्रौली,
विकास खण्ड-परतावल,
जनपद-महराजगंज, उ०प्र०।
वो कागज की नाव वो पीपल की छाँव।
वो सावन का झूला वो गुड़ियों संग खेला।
बहुत याद आता है मेरा सखियों से अनबन।
कोई लौटा दे वो मेरा प्यारा सा बचपन।
बारिश की बूँदों में छमछम नहाना।
बिजली चमकने पर डरकर सहम जाना।
वो पढ़ना-पढ़ाना वो परीक्षा की घड़ियाँ।
हमे याद आती है वो गुरुजी की छड़ियाँ।
समर्पित है उन पर मेरा सारा ये जीवन।
माँ की ममतामयी आँचल में छिपना।
मिट्टी के खिलौने की दुनिया बसाना।
लताओं के गहने बनाकर सजाना।
अपनी सी लगती है वो धरती वो गगन।
कोई लौटा दे मेरा वो प्यारा सा बचपन।
गुड्डा व गुड़ियों की शादी रचाना।
गुड़िया के रुठने पर उसको मनाना।
आँगन में खेलती थी वह नन्हीं सी तनमन।
कोई लौटा दे मेरा वो प्यारा सा बचपन।।
रचयिता
शशिबाला,
इं0 अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सेमरा चन्द्रौली,
विकास खण्ड-परतावल,
जनपद-महराजगंज, उ०प्र०।
Comments
Post a Comment