बिटिया की अभिलाषा
रे बापू! मेरा भी मन करता है,
मैं भी जाऊँ स्कूल..
क्या होता था पहले,
अब उसको जाओ भूल।
वो बात पुरानी हटाओ,
अब ज़ेहन से..
जब बिटिया करती थी,
चूल्हा चौका बचपन से..
वह दौर ज़माने का अब बीत गया..
जब रूढ़िवादी सोच थी जीवन में,
बिटियाँ भी विचरण करतीं,
अब शिक्षा के वन में।
लड़के पढ़ने का अवसर पाते,
उनके लिए कोई दीवार नहीं..
पढ़लिखकर कुछ बन जाऊँ,
क्या मेरा ये अधिकार नहीं।
एक गुज़ारिश है बापू,
सुन लीजैं मेरे अन्तर्मन की भाषा...
गांव,समाज बदलने को आतुर हूँ,
यही इक मेरी अभिलाषा।।
रचयिता
अभिनेन्द्र प्रताप सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय शाहपुर टिकरी,
विकास क्षेत्र-मंझनपुर,
जनपद-कौशाम्बी।
मैं भी जाऊँ स्कूल..
क्या होता था पहले,
अब उसको जाओ भूल।
वो बात पुरानी हटाओ,
अब ज़ेहन से..
जब बिटिया करती थी,
चूल्हा चौका बचपन से..
वह दौर ज़माने का अब बीत गया..
जब रूढ़िवादी सोच थी जीवन में,
बिटियाँ भी विचरण करतीं,
अब शिक्षा के वन में।
लड़के पढ़ने का अवसर पाते,
उनके लिए कोई दीवार नहीं..
पढ़लिखकर कुछ बन जाऊँ,
क्या मेरा ये अधिकार नहीं।
एक गुज़ारिश है बापू,
सुन लीजैं मेरे अन्तर्मन की भाषा...
गांव,समाज बदलने को आतुर हूँ,
यही इक मेरी अभिलाषा।।
रचयिता
अभिनेन्द्र प्रताप सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय शाहपुर टिकरी,
विकास क्षेत्र-मंझनपुर,
जनपद-कौशाम्बी।
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