बाल-उमंग
हम विद्यालय जाते हैं
गीत ख़ुशी के गाते हैं
फूलों जैसे महके-महके
हम हैं पंछी चहके-चहके
सागर जैसे हम दिलवाले
बैर नहीं हम मन में पालें
रूठें फिर मन जाते हैं
झट अपने बन जाते हैं
तितली जैसे हम मतवाले
मीठे मिट्ठू भोले-भाले
घड़ी-घड़ी मुसकाते हैं
छुप-छुपकर शरमाते हैं
सपने हैं रंगीन हमारे
हम सबकी आँखों के तारे
खिला-खिलाकर खाते हैं
हम सबसे बतियाते हैं
हम मासूम परिन्दे हैं
प्रभु के सच्चे बन्दे हैं
हम नन्हें पौधों की कोंपल
भाव हमारे नाज़ुक कोमल
मिट्टी और चन्दन की खुशबू
हम हैं चंचल छमछम घुँघरू
निर्मल जैसे ओस के मोती
शीतल जैसे चाँद की ज्योति
नहीं सताती कल की चिन्ता
हम रहते हैं आज में ज़िन्दा
इसीलिए हम हैं मस्ताने
चलते-फिरते मधुर तराने
चाहें हम हों कितने कच्चे
लेकिन हम हैं दिल के सच्चे
यही हमारी असली दौलत
जिससे है धरती पर रौनक
आओ सब ये दौलत पायें
खुशियाँ ही खुशियाँ फैलायें
हे भगवान् यही है विनती
दुनिया हो हम जैसी सच्ची
रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
ज़िला बरेली (उ.प्र.)
गीत ख़ुशी के गाते हैं
फूलों जैसे महके-महके
हम हैं पंछी चहके-चहके
सागर जैसे हम दिलवाले
बैर नहीं हम मन में पालें
रूठें फिर मन जाते हैं
झट अपने बन जाते हैं
तितली जैसे हम मतवाले
मीठे मिट्ठू भोले-भाले
घड़ी-घड़ी मुसकाते हैं
छुप-छुपकर शरमाते हैं
सपने हैं रंगीन हमारे
हम सबकी आँखों के तारे
खिला-खिलाकर खाते हैं
हम सबसे बतियाते हैं
हम मासूम परिन्दे हैं
प्रभु के सच्चे बन्दे हैं
हम नन्हें पौधों की कोंपल
भाव हमारे नाज़ुक कोमल
मिट्टी और चन्दन की खुशबू
हम हैं चंचल छमछम घुँघरू
निर्मल जैसे ओस के मोती
शीतल जैसे चाँद की ज्योति
नहीं सताती कल की चिन्ता
हम रहते हैं आज में ज़िन्दा
इसीलिए हम हैं मस्ताने
चलते-फिरते मधुर तराने
चाहें हम हों कितने कच्चे
लेकिन हम हैं दिल के सच्चे
यही हमारी असली दौलत
जिससे है धरती पर रौनक
आओ सब ये दौलत पायें
खुशियाँ ही खुशियाँ फैलायें
हे भगवान् यही है विनती
दुनिया हो हम जैसी सच्ची
रचनाकार
प्रशान्त अग्रवाल
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
ज़िला बरेली (उ.प्र.)
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