143/2025, बाल कहानी- 04 सितम्बर


बाल कहानी - सपना का सपना
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बात चार साल पहले की है, जब पूरा विश्व एक भयावह स्थिति से लड़ाई कर रहा था। समूचा संसार कोरोना नामक महामारी के चंगुल में फँसा हुआ था। छोटी-सी सपना अपनी माँ तथा बहन-भाई के साथ एक गाँव में रहती थी। 
कुछ समय तक तो सब-कुछ ठीक चलता रहा, लेकिन अब गाँव भी उस महामारी की चपेट से अछूता न रहा। गाँव को भी महामारी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। एक से दूसरे व्यक्ति में यह बीमारी फैलती जा रही थी। देखते ही देखते पूरे गाँव में यह महामारी पाँव जमा चुकी थी। आज गाँव में कोरोना का टैस्ट करने के लिए टीम आने वाली थी। सब गाँव वाले बहुत ज्यादा डरे हुए थे।
सैम्पल एकत्रित करके जाँच-पड़ताल की शुरुआत हुई। काफी लोग पॉजिटिव पाये गये। गम्भीर लोगों को टीम अपने साथ ही जिला अस्पताल ले गयी, जबकि अन्य सभी कम गम्भीर मरीजों को घरों में ही आइसोलेट रहने की हिदायत और दवाई की किट देकर टीम वापस चली गयी।
पॉजिटिव लोगों में सपना की माँ भी थी, लेकिन उनके लक्षण ज्यादा गम्भीर नहीं थे। इसलिए टीम उनको अपने साथ नहीं ले गयी। पहले से घर में बहुत परेशानी थी, माँ की बीमारी ने तीनों बच्चों को और भी ज्यादा तोड़कर रख दिया। 
घर का राशन भी खत्म हो चुका था। पैसे भी नहीं थे कि राशन खरीद कर लाया जा सके। बच्चे निराश अवस्था में भूखे बैठे हुए थे, कि एकाएक एक गाड़ी आकर उनके दरवाजे पर आकर रुकी। यह गाड़ी सरकार की तरफ से राशन और राहत सामग्री वितरित करने आयी थी। गाड़ी को देखकर सबके चेहरों पर थोड़े राहत के भाव आये। सब राशन लेकर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये।
सपना अभी भी आसमंजस में थी। वह लोग इस स्थिति से कैसे उभरेंगे? तभी अचानक से माँ की तबियत और ज्यादा खराब होने लगी। उनका आक्सीजन लेवल गिरता जा रहा था। अब घर पर उनका इलाज सम्भव न था, इसलिए एम्बुलेंस आकर उसकी माँ को अपने साथ ले गयी।
हाॅस्पिटल में एडमिट किया गया, लेकिन ऑक्सीजन के सिलेण्डर की कमी के कारण उनको समय से आक्सीजन नहीं मिल पायी। कुछ समय वो जिन्दगी और मौत के बीच झूला झूलती रहीं। आखिरकार मौत का पलड़ा भारी निकला और वह जीवन की जंग हार गई। माँ के पार्थिव शरीर को देखकर तीनों बच्चे लाचार होकर उनसे लिपटकर रो रहे थे, पर माँ कहाँ सुन रही थी किसी की बात।
सपना की माँ को अगर समय से आक्सीजन मिल जाती तो शायद वह जिन्दगी की जंग जीत जातीं।
यहीं सोचकर सपना ने उसी समय एक प्रण लिया जो प्राणवायु हमें मुफ्त में मिलती है पेड़-पौधों से उसकी कमी की वजह से उसकी माँ की जान गई। अब वह अपनी धरती पर ऑक्सीजन की कमी नहीं होने देगी। यहीं प्रण लेकर वह अपने मिशन में जुट गई। उसका नारा था- "हरी-भरी ये धरा और संसार आक्सीजन का है भण्डार"
आज वह अपने सपने को पूरा करने में पूर्ण मनोयोग से जुटी हुई है।

#संस्कार_सन्देश - 
हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए और खूब पेड़-पौधे लगाने चाहिए।

कहानीकार-
#ब्रजेश_सिंह (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बीठना,
लोधा, अलीगढ़ (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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