145/2025, बाल कहानी- 09 सितम्बर
बाल कहानी- पीले चाँवल
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विषय की जानकारी के अभाव में पीले चाँवल पर लघु निबन्ध लिखना छोटी को टेढ़ी-खीर लग रहा था।
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली छोटी प्रश्न में उलझी, शीर्षक लिखते सोच रही थी कि क्या लिखूँ?
तभी अनायास उसे याद आया कि बुआ की बारात आई थी, तब पीले चाँवल पूजा की थाल में रखने के लिए, दादी ने अम्मा से कहा था, जिसे मैंने ही आँगन से लाकर दिया था।
तब झटपट उसने लिखा कि हमारी संस्कृति में हर शुभ अवसर पर पीले चाँवल अर्थात बिना टूटे अक्षत को हल्दी में रंग कर थाल में रखते हैं, जिससे स्वागत टीका लगता है। दीपावली, गणेश पूजन, रक्षा-बन्धन, भाई-दूज सहित अनेक त्योहार मनाने हेतु मंगल का प्रतीक पीले चाँवल हैं।
शादी-व्याह और जब किसी कार्यक्रम में अतिथि आते हैं तो स्वागत में भी प्रयोग करते हैं।
अखंड मंगल का प्रतीक पीले चाँवल अतिथि देवता के सम्मान में लगाते हैं।
शादी के कॉर्ड में भी हमारे दादा जी ने लगाते हुए कहा था, "हल्दी चाँवल का शगुन होता है, जिससे नेवता देने के लिए सम्मानपूर्वक आमन्त्रित करते हैं।"
इस तरह हिन्दू रीति-रिवाज में हर शुभ कार्य में पूर्णता काप्रतीक माना गया है। निबन्ध पूर्ण हुआ, छोटी राहत की साँस ले उत्तर-पुस्तिका जमा कर निकल गयी।
घर पहुँचकर जब उसने कहा, "दादी.. दादी! आज आपकी वजह से मैंने कठिन प्रश्न सुलझा लिया।" दादी ने गले लगाते कहा, "अरे! प्रीति (छोटी की माँ ) सुनो तो अब हमारी छोटी बहुत बड़ी और समझदार हो गई है। आज तो स्कूल में निबन्ध में ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की
परीक्षा में भी छोटी सफल हो गई है।"
कहते हुए दादी ने छोटी को प्यार से चूमकर सीने से लगा लिया।
छोटी भी खुशी से आह्लादित हो उठी।
#संस्कार_सन्देश -
हमें अपने संस्कार और परम्परागत नियमों को नहीं भूलना चाहिए और समय पर इनसे सदा कुछ सीखना चाहिए।
कहानीकार-
#अमिता_रवि_दुबे (पू० हिन्दी प्राध्यापक)
शासकीय सुखराम नागे महाविद्यालय
छिपली, नगरी, धमतरी (छत्तीसगढ)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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