157/2025, बाल कहानी - 24 सितम्बर


बाल कहानी - छोटा दीपक
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गाँव की पगडण्डी पर एक नन्हा-सा लड़का रोज शाम को मिट्टी के दिए लेकर बैठ जाता था, उसका नाम था दीपक। लोग हँसकर कहते, “देखो, नाम भी दीपक और काम भी दिया बेचना ही है।”
दीपक की माँ घर-घर जाकर काम करती थी और पिता लकड़ी काटने जंगल जाते। पढ़ाई का बड़ा शौक़ था, लेकिन किताबों की जगह उसके हाथों में हमेशा मिट्टी के छोटे-छोटे दिए ही रहते।
एक दिन स्कूल की टीचर उधर से गुजरीं। उन्होंने देखा कि दीपक बड़े प्यार से हर दिए को कपड़े से साफ कर रहा है और फूँक मारकर उसकी धूल हटाता है।
टीचर ने मुस्कुराकर पूछा, “बेटा! इतने मन से यह दिए क्यों सँवारते हो? ये तो बिक ही जाएँगे।”
दीपक ने धीरे से कहा, “मैडम! जब कोई दिया जलता है तो मेरा मन होता है, जैसे- उसमें मेरी भी रोशनी है। मैं चाहता हूँ कि मेरे बनाए दिए जब किसी के घर जलें तो वहाँ खुशी और उजाला फैलाएँ।”
टीचर उसकी बात सुनकर चकित रह गई। उन्होंने तय किया कि अगले दिन स्कूल में उसकी मदद करेंगी।
कुछ दिन बाद गाँव के स्कूल में दीपावली की सजावट प्रतियोगिता हुई। दीपक ने अपने बनाए हुए दिए वहाँ सजाये। बच्चे देख हैरान रह गए। साधारण मिट्टी के दिए, लेकिन उनमें एक अनोखी चमक थी, मानो उनमें सचमुच दीपक का दिल जल रहा हो।
उस दिन वह प्रतियोगिता जीत गया। पुरस्कार के रूप में उसे किताबें मिलीं। दीपक की आँखें चमक उठीं, “अब मैं पढ़ भी सकूँगा और मिट्टी के दिए भी बनाता रहूँगा।”
उसकी माँ ने बेटे को गले लगाया और कहा कि “बेटा! तू सचमुच हमारे घर का दीपक है।”

#संस्कार_सन्देश -
बालमन के सपने छोटे हों या बड़े, उनमें सच्चाई और लगन हो तो वे अपने घर ही नहीं, समाज का भी जीवन रोशन कर सकते हैं।

रचनाकार- 
पुष्पा पाठक (सेवानिवृत्त शि०) 
शां माध्यमिक शाला, डेरा पहाड़ी 
छतरपुर (म०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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