159/2025, बाल कहानी- 26 सितम्बर
बाल कहानी - गहन संकल्प
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"नौकरी-नौकरी करते हैं लोग! क्या जानें वो, जो नौकरी करता है? वही जानता है। नौ- नौ कर लगे हैं। इस पर जितनी मुश्किल पाने में होती है, उससे कहीं अधिक निभाने में होती है। तब जाकर पैंशन हो पाती थी बुढ़ापे में। अब तो वह भी नहीं रही। पता नहीं क्यों? सरकारी नौकरी के चक्कर में बूढ़े होते जा रहे हैं। न नौकरी मिली, न कोई धन्धा देखा। माया मिली न राम। ऊपर से हर एक टेस्ट से पहले पेपर आउट। फिर लगे रहो रात-दिन पढाई पर और हासिल जीरो।" गत वर्ष सरकारी नौकरी से रिटायर हुए ऋषभ के पिता अपने ज्येष्ठ पुत्र पैंतीस बसन्त पार चुके ऋषभ को इस बार भी टेस्ट में असफल होने पर गुस्सा दिखा रहे थे। दस वर्षीय दीपक जो अपने ताऊ (ऋषभ के पिता) के साथ नगर में रहकर पढ़ रहा था, ताऊ की बातों का मतलब समझने लगा था और मन ही मन संकल्प ले चुका था कि, "वह बड़े भाई ऋषभ की तरह सरकारी नौकरी के चक्कर में अपना जीवन यों ही बर्बाद नहीं करेगा, बल्कि पढ़-लिखकर स्वरोजगार अपनाते हुए नौकरी वालों से अच्छा करके दिखायेगा। चाहे उसे कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े।"
जहाँ चाह, वहाँ राह! इण्टर करने के उपरान्त निकट के आई० टी० आई० से व्यवसायिक कोर्स कर, वह नगर में ही सीखे हुए ज्ञान व कौशल से स्वरोजगार हेतु कोशिश करने लगा। शीघ्र ही उसने एक दुकान किराये पर ली और आटोमोबाइल रिपेयरिंग का काम करने लगा। उसकी लगन, मेहनत व मृदुल व्यवहार से धीरे-धीरे उसका कारोबार चल निकला। यद्यपि उसे कई बार ग्राहकों की झिड़कियों या अन्य ईर्ष्यालु स्वभाव के लोगों द्वारा परेशान करने की कोशिशें की गयीं लेकिन वह शान्त स्वभाव दिखाकर धीर गम्भीर हो, निरन्तर अपने काम पर फोकस रखता। बेहतर सेवाएँ प्रदान करते हुए ग्राहकों की सन्तुष्टि का ध्यान रखता। परिणामस्वरूप आज वह नगर व नगर से बाहर कई वाहन एजेन्सियों का स्वामी बनकर उन्नति के पथ पर अग्रसर है।
ताऊ जी का पुत्र ऋषभ भी अब उसके व्यवसाय में हाथ बँटाकर अपना जीवन निर्वाह कर रहा।
#संस्कार_सन्देश-
व्यक्ति चाहे तो क्या नहीं कर सकता है, सिर्फ गहन संकल्प की जरुरत है और मन्जिल सामने।
कहानीकार-
#दीवान_सिंह_कठायत (प्र०अ०)
रा० आ० प्रा० वि० उडियारी बेरीनाग, पिथौरागढ।
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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