150/2025, बाल कहानी- 15 सितम्बर


बाल कहानी - अच्छा स्कूल
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रोज की तरह राजू और मुनिया घर लौट रहे थे। दोनों अपने-अपने विषय की बातें कर रहे थे-, "आज मैंने हिन्दी में यह सीखा... अंग्रेजी में तो मजा ही आ गया।" तभी पास की झाड़ियों में सरसराहट सुनाई पड़ी। राजू और मुनिया चौंके! फिर पास में जाकर देखा तो हैरान रह गए! झाड़ियों के पीछे मोहन छिपा था। दोनों ने एक साथ पूछा, "अरे मोहन! आज तुम स्कूल नहीं गए क्या? तुम तो बीमार भी नहीं लग रहे हो?" मोहन लापरवाही से बोला, "स्कूल जाकर क्या होगा? मुझे तो इन पेड़ों के पीछे छुपम-छुपाई खेलने में बहुत मजा आता है और राजू! कल से तुम भी स्कूल के लिए निकलना, पर स्कूल जाने के स्थान पर मेरे साथ यहीं पर खेलना।" 
"अरे! नहीं.. नहीं.. राजू स्कूल ही जायेगा और मेरी मानो तो तुम भी स्कूल चलो! स्कूल में बहुत कुछ सीखने को मिलता है।" राजू बोला। मोहन ने लापरवाही से अपने हाथ झटके और आगे बढ़ गया। राजू और मुनिया भी अपने घर को चले। 
दादी ने हमेशा की तरह दोनों को प्यार किया। दोनों भोजन कर अपना गृहकार्य करने लगे। रात होते ही दोनों मोहन से हुई बातचीत दादी को बताने लगे। दादी ने कहा, "अरे! यह तो बहुत चिन्ता का विषय है.. क्या तुम्हारी टीचर को यह बात पता है कि मोहन विद्यालय नहीं आता?" 
"पता नहीं दादी!" 
"बच्चो! मोहन के घर में केवल उसके पिता है, जो दिन-भर काम से बाहर रहते हैं। माँ का देहावसान हो चुका है इसलिए मोहन के लिए उसकी शिक्षिका से ही बात करनी होगी।" 
दूसरे दिन दादी ने शिक्षिका सुमनलता को घर पर बुलाया और मोहन के बारे में बातचीत होने लगी। दादी ने बताया कि, "मोहन के घर में उसकी माँ नहीं  है। पिता मेहनत-मजदूरी करते हैं, पर उनकी इच्छा है कि मोहन पढ़-लिख जाये और उसे कोई उच्च पद प्राप्त हो...।" दादी ने बताया कि, "मोहन थोड़ा अलग है, उसे स्कूल अच्छा नहीं लगता इसलिए उसे पढ़ाने के लिए कुछ अलग तरीका अपनाना पड़ेगा।" शिक्षिका और दादी बहुत देर तक मोहन के विषय में बात करते रहे, फिर दादी और अध्यापिका मोहन के घर की तरफ चले। मोहन बाहर अकेला ही खेल रहा था। अध्यापिका को देखते ही वह भागने लगा, पर दादी को देखकर ठिठक गया! "क्यों रे, मोहन! तू स्कूल क्यों नहीं जाता?" दादी ने उसे प्यार भरी झिड़की दी, पर अध्यापिका ने उन्हें इशारे से रोका और मोहन से प्यार से कहा, "अरे मोहन! हमें अपने घर नहीं ले चलोगे?" 
मोहन सकपका कर दादी को देखने लगा। दादी ने कहा, "चलो बेटा!" मोहन के घर की तरफ चलीं। घर के अन्दर कोने में कुछ सुन्दर पत्थर और ईंटें घर की आकृति में सजी हुई थीं। अध्यापिका ने उत्सुकता से पूछा, "अरे मोहन! यह क्या है?" 
मोहन शर्माते हुए बोला, "मैडम! यह घर है। मुझे घर बनाना बहुत अच्छा लगता है।" 
"अरे वाह! मोहन तो तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?" मोहन की समझ में ही नहीं आया कि घर कौन बनाता है? अध्यापिका ने कहा, "इसका मतलब है कि तुम बड़े होकर आर्किटेक्ट इन्जीनियर बनना चाहते हो।" मोहन का इस शब्द से कोई परिचय ही नहीं था। "आर्किटेक्ट इन्जीनियर?" मोहन अटकते हुए बोला, "पर मैंने तो कभी यह शब्द ही नहीं सुना! जब तुम स्कूल आना शुरू करोगे तो ऐसे बहुत से शब्दों से तुम्हारा परिचय होगा, पर अगर तुम स्कूल से भागते रहे तो तुम्हारा सपना कैसे पूरा होगा? सपना पूरा करने के लिए तो बहुत पढ़ाई करनी होगी।" अध्यापिका ने प्यार से मोहन को गले लगा लिया। मोहन को अपनी माँ याद आ गई। वह बोला, "आप मुझे मारेगी तो नहीं... मुझे लगता है कि स्कूल में बहुत पिटाई होती है?" 
"नहीं मोहन! तुम स्कूल आओ तो सही और वादा करो कि तुम अब स्कूल से कभी नहीं भागोगे, नहीं तो तुम्हारा सपना कैसे पूरा होगा?" 
उस दिन के बाद से मोहन नित्य स्कूल जाने लगा। नयी-नयी बातें सीखने लगा। राजू, मनिया को उसने बताया कि, "अब उसे भी स्कूल अच्छा लगता है।"

#संस्कार_सन्देश-
हमें कभी भी पढ़ाई में संकोच और लापरवाही नहीं करना चाहिए। हर कार्य की एक विशेष उम्र होती है।

कहानीकार-
डॉ० #सीमा_द्विवेदी (स०अ))
कम्पोजिट विद्यालय कमरौली जगदीशपुर (अमेठी)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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