158/2025, बाल कहानी- 25 सितम्बर


बाल कहानी - मोटे लाला
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मोतीलाल सेठ जी की एक बहुत बड़ी-सी किराने की दुकान थी। मोतीलाल सेठ की दुकान पर कई कर्मचारी काम करते थे। मोतीलाल सेठ स्वयं बैठे रहते थे और देख-रेख करते थे। 
जो भी ग्राहक आता था, उनसे कहता था, "सेठ जी! तुम तो बहुत मोटे हो गए हो। तुम्हारा पेट निकल आया है, थोड़ा चला-फिरी करो।" अक्सर ऐसी बातें सुनकर सेठ जी ने सोचा, "चलो, मैं रोज शाम को टहलने जाया करूँगा। अब मोतीलाल सेठ रोज शाम को टहलने लगे। रोज टहलने से उनका पेट काफी कम हो गया और शरीर सुडौल हो गया। 
एक दिन दुकान पर कुछ युवक आये और सेठजी से बोले, "तुम तो पतरे लाला हो। कुछ खाया पिया करो, मोटे हो जाओगे।" ऐसा कहकर वे हँसने लगे।" 
सेठ जी को यह बात दिल पर लग गई। वह सोचने लगे, "जब मैं मोटा था, तब लोग मेरा मजाक उड़ाते थे। अब मैं पतला हो गया, तब भी मेरा मजाक उड़ाया जा रहा है। अब मैं कैसा बन जाऊँ?" 
सेठ जी के कर्मचारियों में से एक उम्र दराज कर्मचारी उनके पास आया और बोला," सेठ जी! आप इन लोगों की बात पर ध्यान मत दीजिए। यह दुनिया है और दुनिया का काम कहना है।
आप सिर्फ अपने काम के बारे में सोचिए और सदैव खुश रहिए।" उस दिन के बाद सेठ जी ने कभी किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और सदा अपना काम करते रहे। लोग आते रहे, जाते रहे। कोई कुछ कहता था, कोई कुछ कहता था, लेकिन उन्होंने कभी किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया। 
पीठ पीछे लोग बोलते थे, "वह लाला तो किसी की नहीं सुनता है। उसे किसी से मतलब नहीं है वह तो अपने में मगन रहता है।"

#संस्कार_सन्देश - 
हमें सदा अपने मन की बात सुननी चाहिए इस दुनिया का काम कुछ न कुछ कहना है।

कहानीकार-
#शालिनी (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय न० कूँड
करहल, मैनपुरी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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