मैं एक शिक्षक हूँ
हाँ! मैं एक शिक्षक हूँ ...
अनगढ़ मिट्टी से
आकार गढ़ा करती हूँ
मैं चेहरे से लेकर मन
तक रोज पढ़ा करती हूँ।
मेरी वाणी अंधकार
हरा करती है।
सपनों का संसार
रचा करती है।
मेरे श्रम से
भविष्य बना करते हैं।
शिक्षा का
आकाश फला करता है।
मैं बच्चों में
संस्कार गढ़ा करती हूँ
मैं क्षणिक वैभव की
नहीं याचना करती।
मैं पीढ़ियों के भाग्य
सृजा करती हूँ।
गढ़ लेंगे साम्राज्य
स्वयं मेरे बच्चे।
मैं शिक्षा में
वो सामर्थ्य भरा करती हूँ।
मैं अपनी अटूट निष्ठा से
आलोकित राह गढ़ा करती हूँ।
रचयिता
डॉ0 निशा मौर्या,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मीरजहांपुर,
विकास खण्ड-कौड़िहार-1,
जनपद-प्रयागराज।

Comments
Post a Comment