144/2025, बाल कहानी - 08 सितम्बर
बाल कहानी - वास्तविक गहना
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शशांक और साधना सहपाठी थे। वे दोनों कक्षा में कमजोर छात्रों में गिने जाते थे। कक्षोन्नति तो हो ही जाती थी, मगर उनका परिचय वही रहता था।
जिससे उन्हें विद्यालय से और पढ़ने से अरुचि होने लगी थी।साधना घर पर भी धीरे-धीरे उदासीन रहने लगी।
उसे देख माँ परेशान हो उठी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?
माँ-दादी, पास-पड़ोस उसे सशंकित निगाहों से देखने लगे। चारों तरफ के असह्य दबावों से वह खीज उठी।
एक दिन अनमने भाव से वह एक किताब के पन्नों को पलट रही थी। अचानक एक चित्र को ध्यान से देखने पर उसे एक कहानी याद आई। उसे इसमें अपनी परछाई दिखाई दी। उसने मन ही मन संकल्प किया कि सोलह श्रृंगार भले ही न हो सकें लेकिन शिक्षा से सुसज्जित होना अति आवश्यक है। इस संकल्प के साथ अब वह मन लगाकर पढ़ने लगी और कक्षा में अपने सहपाठी शशांक को भी प्रेरित कर मार्गदर्शन करने लगी। कालान्तर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे सरकारी सेवा में लग गए। अब वह भली भाँति जान चुके थे कि शिक्षा ही वास्तविक गहना है।
#संस्कार_सन्देश -
शिक्षा सचमुच ही वास्तविक गहना है, शिक्षित होकर ही हम सुशोभित होते हैं।
कहानीकार-
श्रीमती #सरोज_डिमरी (स० अ०)
रा० उ० प्रा० वि० घतोड़ा विकासखण्ड, कर्णप्रयाग, चमोली (उत्तराखण्ड)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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