दिया जलाना माटी का

जिस माटी में जन्म लिये हैं
           तिलक लगाना माटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
            दिया जलाना माटी का।।
जिस माटी का दीया बनता
          वह माटी भारत माता है।
दीया बन तुम करो उजाला
            भारत यही सिखाता है।।
घी-तेल सा स्वाभिमान,
       सम्मान राष्टप्रेम की बाती का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
             दीया जलाना माटी का।।

मानवता उपकार जहाँ     
        जन-जन के दिल में पलता है।
माटी के दीये जलने से
       किसी घर का दीया जलता है।।
यह माटी का दीया तो
        आधार पेट की रोटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
         दीया जलाना माटी का।।

गैरों का सामान विदेशी
           भले ही सस्ता लगता है।
पर अपनों का करें अनादर
            क्या यह अच्छा लगता है।।
खुशियों का त्यौहार मनायें
             आओ हम सब माटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
           दीया जलाना माटी का।।

खुशी एकता के दीये से
          ज्योति जलाते रहो सदा।
करें दूर दीया माटी का
             दुःख, दरिद्र व आपदा।।
आओ सबको मिल बतलायें
          कीमत दीया और माटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
             दीया जलाना माटी का।।

माटी के दीये से तो कुछ
          शहर आज भी वंचित है।
जबकि माटी के दीये से
             पर्यावरण सुरक्षित है।।
बिजली का दीया करता
          भरमार कीड़े उत्पाती का।
भारत से घर प्रेम तुम्हें तो
            दीया जलाना माटी का।।

किस माटी के बने हैं हम
           दुनिया को यह बतलाना है।
बुरी नजर हम पर जो डाले
             माटी में उसे मिलाना है।।
गौरव गाथा याद करो
            कश्मीर या हल्दीघाटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
            दिया जलाना माटी का।।

प्रेम, प्रकाश, खुशी, उपहारों
     का द्योतक है दीवाली।
ज्योति से ज्योति जले जब तो
       उपकार का द्योतक दीवाली।।
अरुण राष्ट्रहित है सर्वोपरि
          संस्कार अपनी परिपाटी का।
भारत से गर प्रेम तुम्हें तो
            दीया जलाना माटी का।।

रचनाकार
अरुण कुमार यादव,
उच्च प्राथमिक विद्यालय बरसठी,,
विकास क्षेत्र-बरसठी,
जनपद-जौनपुर।
Mob--9598444853

Comments

Total Pageviews