नव विहान
चलो आज फिर कुछ पढ़ाते हैं।
बच्चों के साथ हम भी बच्चे बन जाते हैं।।
क्या हुआ जो संसाधन कम है।
बच्चों को कुछ सपने दिखाते हैं।।
भूलकर सारी नकारात्मक बातें।
नए सिरे से अपनी क्षमता आजमाते हैं।
महकेंगे ये बच्चे भी फूलों की तरह
शिक्षा रूपी पानी से इन्हें नहलाते हैं।।
भूलकर अपनी अकड़ और स्वाभिमान
बच्चों के साथ खेलने में लग जाते हैं।
सफलता दिलाकर बच्चों को समाज में
उनके हौसलों में पंख लगाते हैं।।
एक बार फिर से बेसिक के शिक्षकों की
खोयी हुई गरिमा वापस लौटाते हैं।।
रचनाकार
मनीष कुमार वर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय ताड़ी,
विकास क्षेत्र-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।
बच्चों के साथ हम भी बच्चे बन जाते हैं।।
क्या हुआ जो संसाधन कम है।
बच्चों को कुछ सपने दिखाते हैं।।
भूलकर सारी नकारात्मक बातें।
नए सिरे से अपनी क्षमता आजमाते हैं।
महकेंगे ये बच्चे भी फूलों की तरह
शिक्षा रूपी पानी से इन्हें नहलाते हैं।।
भूलकर अपनी अकड़ और स्वाभिमान
बच्चों के साथ खेलने में लग जाते हैं।
सफलता दिलाकर बच्चों को समाज में
उनके हौसलों में पंख लगाते हैं।।
एक बार फिर से बेसिक के शिक्षकों की
खोयी हुई गरिमा वापस लौटाते हैं।।
रचनाकार
मनीष कुमार वर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय ताड़ी,
विकास क्षेत्र-मऊ,
जनपद-चित्रकूट।
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