आओ ज्ञान का दीप जलायें
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
अज्ञानता के तम को दूर भगायें।।
मिट्टी के दिये का करें प्रयोग चायनीज फुलझड़ियों को दूर भगायें।
किसी गरीब के घर को भी रोशन कर जायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
अपने घर, अपने पड़ोस, अपने शहर को साफ कर जायें।
एक नन्हा पौधा उगाकर साँस को उन्मुक्त बनायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
प्रतिमा को करके नमन प्रति माँ को सम्मान दिलायें।
भेदभाव को खत्म करें, इन्हे अबला नही सबला बनायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
क्रोध, ईर्ष्या, भय को पटाखे के साथ जलायें।
मन की नकारात्मकता को दूर भगायें।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
दौलत की अंधी दौड़ मे हम सब जग जायें।
प्रेम शांति और आनन्द मे डूबकर अनन्त से जुड़ जायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
यह उत्सव नहीं महोत्सव है, इसे मानें और मनायें।
जन-जन में फैले राग द्वेष को हम सब मिटायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
रचयिता
ब्रजेश कुमार द्विवेदी,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हृदयनगर,
जनपद-बलरामपुर।
अज्ञानता के तम को दूर भगायें।।
मिट्टी के दिये का करें प्रयोग चायनीज फुलझड़ियों को दूर भगायें।
किसी गरीब के घर को भी रोशन कर जायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
अपने घर, अपने पड़ोस, अपने शहर को साफ कर जायें।
एक नन्हा पौधा उगाकर साँस को उन्मुक्त बनायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
प्रतिमा को करके नमन प्रति माँ को सम्मान दिलायें।
भेदभाव को खत्म करें, इन्हे अबला नही सबला बनायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
क्रोध, ईर्ष्या, भय को पटाखे के साथ जलायें।
मन की नकारात्मकता को दूर भगायें।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
दौलत की अंधी दौड़ मे हम सब जग जायें।
प्रेम शांति और आनन्द मे डूबकर अनन्त से जुड़ जायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
यह उत्सव नहीं महोत्सव है, इसे मानें और मनायें।
जन-जन में फैले राग द्वेष को हम सब मिटायें।।
आओ ज्ञान का दीप जलायें।
रचयिता
ब्रजेश कुमार द्विवेदी,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हृदयनगर,
जनपद-बलरामपुर।
बहुत सुन्दर सर।।
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