दीवाली उसे भी मनानी है
"दीवाली उसे भी मनानी है,
दीपक भी उसे जलाने हैं।
पिछ्ले साल न बिके थे दिये,
इस साल भी दुकान सजा ली है।
चकाचौंध की इस दुनिया में,
कौन पूछता है मिट्टी के दीपों को।
सब मस्ती मे झूम रहे हैं,
कौन पूछेगा फिर इन गरीबों को।
बीच बाज़ार में है दुकान उसकी,
वह तो अरमान सजाये बैठा है।
आशा है बिकेंगे दीप भी उसके,
वह तो टकटकी लगाये बैठा है।
दीवाली उसे भी मनानी है।
दीपक भी उसे जलाने है।।"
दीपक भी उसे जलाने हैं।
पिछ्ले साल न बिके थे दिये,
इस साल भी दुकान सजा ली है।
चकाचौंध की इस दुनिया में,
कौन पूछता है मिट्टी के दीपों को।
सब मस्ती मे झूम रहे हैं,
कौन पूछेगा फिर इन गरीबों को।
बीच बाज़ार में है दुकान उसकी,
वह तो अरमान सजाये बैठा है।
आशा है बिकेंगे दीप भी उसके,
वह तो टकटकी लगाये बैठा है।
दीवाली उसे भी मनानी है।
दीपक भी उसे जलाने है।।"
रचयिता
अभिषेक शुक्ला,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लदपुरा,
विकास क्षेत्र-अमरिया,
जिला-पीलीभीत।
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