मन के दीप जलाना

तुम ऐसे ही मुस्काना,
जीवन पथ चलते जाना।
सुख-दुख दोनों संगी अपने,
मन में कितने सुन्दर सपने।
सपनों के पंख लगाकर,
तुम अम्बर तक उड़ जाना।
     तुम ऐसे ही मुस्काना।।

यह जीवन है कितना सुन्दर,
जिसमें गहरे मोती समन्दर।
चुनकर मोती सुखद सजीले,
हार बना़ओ तुम रंग-रंगीले।
 बढ़ते जीवन पथ पर जाना।
      तुम ऐसे ही मुस्काना।

सबसे ही प्रेम अनूठा करना,
संवेदन के बन मेघ बरसना
उजले-उजले जीवन पल हों,
उपवन जैसे मधुमय पल हों।
सुरभि मधुर नव बिखराना।
    तुम ऐसे ही मुस्काना।

जीवन की हो सुखद कहानी,
कर्मरेखा की अमिट निशानी।
कभी न दुख में छाये निराशा,
सुन्दर जीवन की हो आशा।
पल पल जीवन जीते जाना।
   तुम ऐसे ही मुस्काना।
   मन के दीप जलाना।।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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