बदलाव

स्कूलों के बाहर के कुछ बच्चे,
नन्हें-मुन्हेप्यारे और अच्छे।
जब पहली बार उन्होंने,
कलरव का पहला पन्ना खोला।
छुट्टी के समय तक वे खोजते रहे,
अपने पिता को किताबों में।
मजदूर का बेटा ढूँढता रहा
अपने मजदूर पिता को।
बड़ी इमारतोंभव्य सड़कों
और शहरों के चित्रों को देखते हुए।
किसान का बच्चा ढूँढता रहा,
अपने किसान पिता की पसीने से लथपथ देह,
कुछ वर्गाकार खेतों को देखते हुए।
सफाईकर्मी का बेटा,
पूछना चाह रहा है एक साफ सुथरी बात,
कि उसका पिता इन किताबों में क्यों नहीं है।
घसियारीन का बच्चा सुनना चाह रहा है,
इन किताबो मेंगौरैया की चूँ चूँ और पपीहे की पी पी।
मगर उन्हें नहीं पता कि ये दुनिया सिर्फ इंजीनियरोंमजिस्ट्रेटोंडॉक्टरों और जिलाधीशों की है।
इसमें मजदूरोंकिसानोंसफाईकर्मी के लिए,
कोई जगह नहीं है।
मेरे प्यारे बच्चो! तुम्हें इन किताबों को बदलना है।

रचयिता
उमेश सिंह,

प्राथमिक विद्यालय गुलरा केराकत,
जनपद-जौनपुर।



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