बेटों को भी बचाना है

       आजकल अपने देश में बेटी बचाओ अभियान का अभियान बड़े जोर-शोर से चल रहा है। लेकिन अब हमें यह सोचना है कि बेटियों को किससे बचाना है। बेटों से ही न। बेटियों को आहत करने वाले उन्हें गर्भ में ही नष्ट करने वाले उन्हें अपनी सम्पत्ति या वस्तु समझने वाले ऑनर किलिंग करने वाले लोग किसी न किसी के बेटे ही तो होते हैं। बहिनों की हत्या करने वाला भाई हो या जुआरी शराबी पिता हो व् दहेज़ का लोभी पति हो या नाबालिग मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाला कोई आरोपी हो।
ये सारे अपने पराये, होते तो किसी के बेटे ही हैं। चोरी, डकैती, अपहरण, अवैध कारोबार आदि सारे कार्य अधिकांशतः पुरुष ही करते हैं। महिलाओं में तो ऐसे मामले कम ही होते हैं। इन सारे अनैतिक और आपराधिक कार्यों का खामियाजा पुरे देश व पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। अतः अब यह गम्भीर प्रश्न हो गया है की हमारे समाज के बेटे ऐसे क्यों हो गए हैं? 
हम उनमे अच्छे संस्कार क्यों नहीं डाल पा रहे हैं? अपने बेटों के नैतिक पतन के लिए हम कहीं न कहीं स्वयम् ही जिम्मेदार हैं। जो बेटे गलत और कुंठित मानसिकता के शिकार हैं जिन्हें अच्छे या बुरे  गलत या सही उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं है उनसे हम कैसे अपने समाज के विकास की उम्मीद कर सकते हैं। इसलिए पहले हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। तब ही हमारी बेटियाँ बचेंगी और पढ़ेंगी। हमारे बेटे और बेटियाँ मिलकर समाज का विकास करेंगे और पूरे मानव समाज को सुरक्षित भविष्य की और ले जाएँगे।
              
लेखिका
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज, नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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