बचपन
ना रखो उन्हें हर वक्त बन्दिशों में
जी लेने दो आनंदपूर्ण जीवन।
बाग़ बग़ीचे की स्वच्छ हवा।
दोस्तों संग मौज मस्ती।।
फिर ना मिलेंगें यह दिन।
बीते हुए पल लौट के नहीं आते।।
जब भी होता फुर्सत के पलों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
मिट्टी में खेलना मुँह में छुपाना
मिट्टी का ही घरौंदा बनाना।
जिद कर बाबू जी की साइकिल बैठना।
पटरी पर लिखना लिख के मिटाना।।
दोस्तों का साइकिल का कैरियर पकड़ फिर छोड़ देना।
गिरना धूल झाड़ना लड़ना फिर मान जाना।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
कँटीले बेर पर चढ़ जाना।
कच्चे पक्के आम को गुलेल से गिराना।।
गन्ने को तोड़ चने की झाड़ को उखाड़ना।
गाँव के तालाब में आम की टहनियों से छपकी लगाना।।
कोसों दूर मेले में पैदल ही जाना।
खेलना खाना दोस्तों संग दौड़ना।।
भैया की डॉट से रूठना मनाना
अच्छे बुरे ज्ञान का अम्मा का समझाना।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
बाल सखाओं संघ छुपन छुपाई
राजा मंत्री चोर सिपाही।
पतंग लूडो क्रिकेट में लड़ाई।।
पाठशाला के मुंशी जी का गुजरना।।
डॉक्टर के आने से पहले वाला अनुवाद की पूछाई।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
घर परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त।
जीने दो उन्हें उनके हिस्से का बचपन।।
गलतियाँ नादानियाँ शैतानियाँ
बड़े-बड़े बस्तों के बोझ में दब सी गयी है।
मम्मी पापा के भविष्य निर्माण की झिड़की ने।
नन्हे होंठो से फूलों सी खिलती हँसी।
नयनाभिराम मुस्कुराहट।।
तकिये को ओट में सिसकियां दब सी गयी हैं।।
जीने दो उन्हें दुनियादारी झमेलो से दूर कुछ पल।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
जी लेने दो आनंदपूर्ण जीवन।
बाग़ बग़ीचे की स्वच्छ हवा।
दोस्तों संग मौज मस्ती।।
फिर ना मिलेंगें यह दिन।
बीते हुए पल लौट के नहीं आते।।
जब भी होता फुर्सत के पलों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
मिट्टी में खेलना मुँह में छुपाना
मिट्टी का ही घरौंदा बनाना।
जिद कर बाबू जी की साइकिल बैठना।
पटरी पर लिखना लिख के मिटाना।।
दोस्तों का साइकिल का कैरियर पकड़ फिर छोड़ देना।
गिरना धूल झाड़ना लड़ना फिर मान जाना।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
कँटीले बेर पर चढ़ जाना।
कच्चे पक्के आम को गुलेल से गिराना।।
गन्ने को तोड़ चने की झाड़ को उखाड़ना।
गाँव के तालाब में आम की टहनियों से छपकी लगाना।।
कोसों दूर मेले में पैदल ही जाना।
खेलना खाना दोस्तों संग दौड़ना।।
भैया की डॉट से रूठना मनाना
अच्छे बुरे ज्ञान का अम्मा का समझाना।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
बाल सखाओं संघ छुपन छुपाई
राजा मंत्री चोर सिपाही।
पतंग लूडो क्रिकेट में लड़ाई।।
पाठशाला के मुंशी जी का गुजरना।।
डॉक्टर के आने से पहले वाला अनुवाद की पूछाई।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
घर परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त।
जीने दो उन्हें उनके हिस्से का बचपन।।
गलतियाँ नादानियाँ शैतानियाँ
बड़े-बड़े बस्तों के बोझ में दब सी गयी है।
मम्मी पापा के भविष्य निर्माण की झिड़की ने।
नन्हे होंठो से फूलों सी खिलती हँसी।
नयनाभिराम मुस्कुराहट।।
तकिये को ओट में सिसकियां दब सी गयी हैं।।
जीने दो उन्हें दुनियादारी झमेलो से दूर कुछ पल।।
जब भी होता फुर्सत के लम्हों में।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता।।
रचयिता
रवीन्द्र नाथ यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कोडार उर्फ़ बघोर नवीन,
विकास क्षेत्र-गोला,
विकास क्षेत्र-गोला,
जनपद-गोरखपुर।
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