दीवाली मनाते हैं
हम शिक्षक नित ही अज्ञानता का अंधकार मिटाते हैं,
ज्ञानदीप के प्रकाश से हम तो रोज दीवाली मनाते हैं।
कब, कहाँ, क्यों, कैसे? यह सब बच्चों को समझाते हैं।
क्या भला, क्या बुरा? यह सब भी हम सिखलाते हैं।
सरस्वती के पावन मन्दिर मे नया सबक सिखाते हैं,
नवाचार का कर प्रयोग छात्रों को निपुण बनाते हैं।
कबड्डी, खो-खो और दौड़ प्रतियोगिता करवाते हैं,
पाठ्यसहगामी क्रियाओं का भी हम महत्व बताते हैं।
बच्चो का कर चहुँमुखी विकास हम फूले नही समाते हैं।
हम शिक्षक शिक्षा की लौ से रोज दीवाली मनाते हैं।
ज्ञानदीप के प्रकाश से हम तो रोज दीवाली मनाते हैं।
कब, कहाँ, क्यों, कैसे? यह सब बच्चों को समझाते हैं।
क्या भला, क्या बुरा? यह सब भी हम सिखलाते हैं।
सरस्वती के पावन मन्दिर मे नया सबक सिखाते हैं,
नवाचार का कर प्रयोग छात्रों को निपुण बनाते हैं।
कबड्डी, खो-खो और दौड़ प्रतियोगिता करवाते हैं,
पाठ्यसहगामी क्रियाओं का भी हम महत्व बताते हैं।
बच्चो का कर चहुँमुखी विकास हम फूले नही समाते हैं।
हम शिक्षक शिक्षा की लौ से रोज दीवाली मनाते हैं।
रचयिता
अभिषेक शुक्ला,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लदपुरा,
विकास क्षेत्र-अमरिया,
जिला-पीलीभीत।
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