हम सबकी भाषा हिन्दी है
भारत के माथे की बिन्दी
अपनी ही प्यारी हिन्दी है,
एक सूत्र में बाँध सके जो
वो सबसे न्यारी हिन्दी है।
देवनागरी लिपि है जिसकी
वह देवों की भाषा हिन्दी है,
जो गर्वित करती है देश को
सब की अभिलाषा हिन्दी है।
सहज व्याख्या सम्भव है
वैज्ञानिक भाषा हिन्दी है,
स्वर-व्यंजन से सजी हुई
कबीर की भाषा हिन्दी है।
जन-मन में है रची-बसी
हम सबकी भाषा हिन्दी है,
भारतेन्दु की भाषा हिन्दी है
प्रसाद की भाषा हिन्दी है।
मेघों में चमकती हिन्दी है
खेतों में बरसती हिन्दी है,
फूलों में महकती हिन्दी है
खग में चहकती हिन्दी है।
माँ में भी बसती हिन्दी है
सपनों में पलती हिन्दी है,
क्यों उपेक्षित है अब तक
आज सिसकती हिन्दी है,
राष्ट्र-भाषा बन पायी क्या
यूँ रोती-बिलखती हिन्दी है,
पिसती सियासत में हिन्दी
अपनों में तरसती हिन्दी है।
रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द,
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर,
जनपद-महराजगंज।
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