158/2024, बाल कहानी - 4 सितम्बर


बाल कहानी- कर्म और भाग्य
----------------------------
दो दोस्त थे, कर्मदीन और भाग्यदीन। दोनों ही अपने-अपने काम खूब लगन और विश्वास के साथ करते थे। भाग्यदीन मानता था कि वह कोई भी कार्य को करे चाहे ना करे, अगर उसके भाग्य में लिखा होगा तो उसका काम अवश्य पूर्ण हो जायेगा। दूसरी तरफ कर्मदीन भाग्य को तो मानता था लेकिन फिर भी उसका ऐसा मानना था कि हमें भाग्य में तभी वह कोई चीज मिलती है, जब हम उसके लिए कर्म करते हैं। इसलिए वह सदैव कहता था कि, "भाग्य से बड़ा कर्म होता है और अगर हम कर्म अच्छे करेंगे तो हमारा भाग्य भी सदैव हमारा साथ देगा। ऐसे ही विश्वास के साथ वह सदैव अच्छे कार्य किया करता था।
दोनों ही दोस्तों का यही मानना था कि बड़े होकर कुछ न कुछ ऐसा कार्य करेंगे, जिससे कि दुनिया में उनका नाम हो और इसी विश्वास के साथ दोनों ही अपने कार्य में सदा मगन रहते थे। भाग्य दीन मेहनत नहीं करता था और सिर्फ यही सोचता था कि, "हम चाहे जितनी भी मेहनत कर लें, अगर हमारे भाग्य में नहीं लिखा है तो हमें कभी भी नहीं मिलेगा और अगर भाग्य में लिखा है तो हमें तुरन्त वह चीज बिना किसी मेहनत के मिल जाएगी, जबकि कर्मदीन कर्म सदैव अच्छे करता रहता था। इसी उद्देश्य से वह सदैव पढ़ाई पूरे मन और लगन से करता था। उसका एक ही सपना था, बड़े होकर एक आईपीएस अधिकारी बनने का। वह सदैव सबसे कहता था कि, "वह बड़ा होकर आईपीएस अधिकारी बनेगा और जो समस्याएँ हैं, उनका समाधान कर दूँगा। जैसे- यातायात की समस्या। उसके लिए मैं नये-नये नियम बनाऊँगा। किसी को भी मार्ग में भीड़ का सामना नहीं करना पड़ेगा। मैं ऐसे नियम बनाऊँगा, जिससे कि सभी को आराम से समय से अपने-अपने स्थान पर पहुँचने में कोई बाधा नहीं आयेगी। इसी के लिए वह सदैव लगन से पढ़ाई करता रहता था। जब उसने आईपीएस की परीक्षा दी। रिजल्ट आया तो उसे मायूसी ही हाथ लगी। उसका परीक्षाफल नकारात्मक था। उसे दुःख बहुत हुआ। बहुत परेशान हुआ लेकिन फिर जल्द ही अपने आप को समझाते हुए उसने उतनी ही और ज्यादा जोश और परिश्रम से परीक्षा दी। अब उसको परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। वह एक बहुत बड़ा आईपीएस अधिकारी बन गया। 
दूसरी तरफ उसका दोस्त जो भाग्यदीन था, वह अपने भाग्य के सहारे बैठा रहता था और सोचता था कि अगर मेरे भाग्य में होगा तो मुझे अवश्य वह चीज मिल जायेगी। ऐसा सोचते- सोचते उसने एक बिजनेस शुरू किया, जिसके लिए वह कभी भी मेहनत नहीं करता था। वह दुकान में जाता और बैठ जाता। हमारे भाग्य में होगा, तो कोई न कोई बड़ा व्यापारी आकर मुझसे सामान लेगा और मैं दिन- दूनी रात- चौगुनी तरक्की कर लूँगा। किस्मत ने उसका साथ दिया और उसका भी व्यापार चल निकला‌। वह बहुत बड़ा आदमी बन गया। 
एक दिन दोनों दोस्त मिले तो कर्मदीन ने अपने बारे में बताया और भाग्य दिन ने अपने बारे में बताया। भाग्यदीन बोला, "देखा! मैंने तो बिल्कुल भी मेहनत नहीं की और इतना बड़ा आदमी बन गया हूँ।" तब कर्मदीन बोला, "हाँ, अवश्य बन गए हो, परन्तु तुम्हारी बिना मेहनत के तुम्हें जो फल मिला है, उससे इतनी आत्म- सन्तुष्टि नहीं होती है और कभी न कभी आदमी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आज मुझे तुम्हारी ही दुकान का सर्वे करने को मिला है और तुम्हारी दुकान में किसी ने शिकायत की है कि गैर कानूनी काम होता है, जिसकी मुझे जाँच- पड़ताल करनी है। मुझे इसके लिए तुमसे पूरी बातें जाननी हैं। मैं कोई भी गलत रिपोर्ट आगे नहीं दूँगा। अब तुम यह बताओ कि तुमने अपने बिजनेस में क्या जोड़- गाँठ लगायी है?" भाग्यदीन को कुछ हिसाब- किताब तो आता नहीं था। बोला, "बस! ऐसे ही बेच देता हूँ और मुझे मुनाफा प्राप्त हो जाता है।" तब कर्मदीन ने कहा कि, "बिना किसी बात की जाँच- पड़ताल किए तुम जो व्यापार कर रहे हो, वह गलत है। हमें भाग्य के सहारे नहीं रहना चाहिए। थोड़ा कर्म भी करना चाहिए।" तब जाकर भाग्यदीन को समझ में आया। वह कर्म भी करने लगा और उसका भाग्य चमक उठा।

संस्कार सन्देश-
सच! भाग्य तभी साथ देता है, जब हम उसके लिए प्रयास करते हैं अर्थात कर्म करते हैं।

लेखिका 
अंजनी अग्रवाल (स०अ०)
उच्च प्रा० वि० सेमरुआ (कानपुर नगर)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

Comments

Total Pageviews