157/2024, बाल कहानी- 03 सितम्बर


बाल कहानी- समझदारी
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राधा एक दिन खेलते- खेलते अपने पिताजी के दफ्तर के बाहर पहुँच गयी। जहाँ उसने देखा कि उसके पिताजी पानी से भरी ग्लास की ट्रे लेकर कुछ लोगों के सामने खड़े हैं।
जब राधा ने यह देखा कि कुछ लोग कुर्सियों पर बैठे हैं और उसके पिताजी उन बैठे हुए व्यक्तियों के लिए पानी लेकर खड़े हैं। यह देखकर राधा के साथ जो बच्चे खेल रहे थे। वह भी उस पर हँसने लगे और राधा से कहने लगे कि, "तुम्हारे पिताजी यह काम करते हैं।"
यह देखकर राधा का मन उदासी से भर गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह खेल को छोड़कर अपने घर चली गयी।
जब शाम को उसके पिता जी घर आये तो राधा ने उनसे पूछा कि, "आप अपने दफ्तर में उन बैठे हुए लोगों के लिए पानी लेकर क्यों खड़े थे.. क्या आप वहाँ पर पानी पिलाने का काम करते हैं?"
तब उसके पिता ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा, "हाँ, बेटा! मैं ज्यादा पढ़ा- लिखा नहीं हूँ और न ही मैं दफ्तर में कोई अधिकारी हूँ, परन्तु कोई भी काम बढ़ा या छोटा नहीं होता। इसी काम के पैसों से हमारा घर चलता है। हमें अपने काम में कभी भी शर्म नहीं करनी चाहिए। जब हमारे घर में कोई अतिथि या अन्य वर्ग का व्यक्ति आता है तो क्या हम उसे पानी नहीं पिलाते हैं? चाय- नाश्ते और भोजन के लिए नहीं पूछते हैं? भूखे को भोजन भी कराते हैं, फिर इसमें शर्म कैसी? मैं तुमको खूब पढ़ना चाहता हूँ ताकि तुम अधिकारी बनो और मेरा नाम रोशन करो।"
अपने पिता की बातें सुनकर राधा अपनी सोच पर शर्मिन्दा हुई । और अपने पिताजी के गले लग गयी।
राधा ने अपने पिताजी से वादा किया कि, "मैं खूब पढ़ाई करूँगी, और आपका नाम रोशन करूँगी।"

संस्कार सन्देश-
काम छोटा हो या बड़ा, हमें अपने काम को सदैव ईमानदारी से करना चाहिए।

रचना तिवारी (स०अ०) 
प्रा० वि० ढिमरपुर (पुनावली कलां) बबीना, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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