162/2024, बाल कहानी- 10 सितम्बर


बाल कहानी - गुरु की महिमा
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मंगल नाम का एक धनी व्यक्ति था। उसका एक बेटा था। उसका नाम रामू था। वह अपने माता- पिता का लाडला और इकलौता बेटा का था। वह बहुत आलसी था। पढाई पर भी वह ध्यान नहीं देता तथा दोस्तों के साथ घूमता- फिरता रहता था। 
एक दिन उसके पापा ने रामू से कहा, "बेटा! अब तुम बडे हो गये हो। ये घूमना- फिरना छोड़ दो और अपनी पढाई पर ध्यान दो। पढाई से ज्ञान प्राप्त होता है। जीवन में वही सफल होता है, जिसके पास ज्ञान होता है।" बहुत समझाने के बाद भी जब वह नहीं माना तो उसके माता- पिता को रामू के भविष्य की चिन्ता होने लगी। आखिर रामू के भविष्य को लेकर उसके माता- पिता ने यह निर्णय लिया कि अब रामू को कुछ साल तक अपने से दूर रखना होगा। तब रामू के पापा उसके गुरू जी ( जो रामू को पढाते थे) के पास जाकर रामू के बारे में बताते हैं और उसके गुरु से कहते कि, "मेरे बेटे की जिम्मेदारी आज से तुम्हारी। मेरे बेटे का भविष्य आप के हाथ में है। मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा।"
अब रामू अपने गुरु जी के साथ रहने लगा। उसके गुरु जी ने रामू को अच्छे- बुरे का ज्ञान बताया कि जीवन में संघर्षों से कैसे लड़ना है? अब रामू अच्छे से पढाई करने लगा। धीरे- धीरे वह पढाई में रूचि लेने लगा तथा गुरु की आज्ञा का पालन करने लगा। अपनी पढाई पूरी करके जब वह घर लौटा तो उसके माता- पिता बहुत खुश हुए क्योंकि वह बहुत ही संस्कारी और आज्ञाकारी हो गया था। वह अपने से बड़ों का सम्मान एवं माता- पिता की आज्ञा का पालन करता था। वह आगे चलकर एक आदर्श नागरिक के रूप में विख्यात हुआ।

संस्कार सन्देश
गुरु ज्ञान मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत है जो हमें जीवन में सच्ची राह दिखाता है।

लेखिका-
दमयन्ती राणा (स०अ०) 
रा० उ० प्रा० वि० ईड़ाबधाणी कर्णप्रयाग (उत्तराखण्ड)

कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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