हिन्दी हैं हम

हिंदी जिसके माथे पे बिंदी

हम उस देश के वासी है

जिसकी राष्ट्रभाषा हिन्दी है।

सबसे सरल है सबसे न्यारी।।

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जनमानस की सरस है हिंदी

कबीर के दोहे सन्तों की वाणी

मीरा सूर के विरह गीत है हिंदी

कानों में रास घोले है ये बोली।।

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हिंदी हमारी आन मान जान है

राष्ट्र एकता की प्राण दाता है

व्याकरण से सरोबार है  हिंदी

इस पर हम सबको गर्व बहुत है।।

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तुलसी की रामचरित मानस हिंदी

जय शंकर प्रसाद की कामायनी

मैथिली शरण की पंचवटी में हिंदी

कानों में रस घोले है जैसे अमृत।।

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शब्दो का  अतुल भंडार है हिंदी

हर रिश्ते की अलग पहचान हिंदी

चाचा चाची दादा दादी नाना नानी

बुआ फूफा मौसा मौसी ताऊ  ताई।।

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अपनी  हिंदी भाषा को अपनाओ

आओ हम हिंदी सबको सिखाए

देश विदेश में परचम लहरायेंगे

इसका मान सम्मान है बढ़ाएँगे।।


रचयिता

माधुरी पौराणिक,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय हस्तिनापुर,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-झाँसी।




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