173/2024, बाल कहानी - 25 सितम्बर
बाल कहानी - नई सोच
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पूजा एक विद्यालय में पढ़ती थी। वह बहुत होशियार थी और कक्षा चार में पढ़ाई में भी बहुत मेहनत करती थी। उसका सपना था कि वह एक अध्यापक बने। कुछ सालों बाद उसने बारहवीं पास की और आगे की पढ़ाई करने के लिए पिताजी से बोली, लेकिन पिताजी की आर्थिक स्थिति ठीक न थी। उन्होंने कहा बारहवीं बहुत है। हमें आपकी शादी भी करनी है लेकिन पूजा अन्दर ही अन्दर सोचने लगी। उसने गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। ट्यूशन के पैसों से वह अपनी आगे की पढ़ाई करने लगी। उसने गाँव में एक कार्यशाला खोलने की सोची, जिसमें गरीब बच्चों को सिखा सके क्योंकि गाँव के बच्चे हस्तकला में निपुण होते हैं। अपने घर में एक बाहर का कमरा था। उसमें वह हस्त-कला की क्लास लेने लगी। माता-पिता से बात कर बच्चों को उसमें सीखने के लिए प्रेरित करने लगी।
एक दिन गाँव में पंचायत हो रही थी। उसमें वीडियो साहब आये हुए थे। पूजा वहाँ पर पहुँची और उनको अपने कार्य के बारे में बताया। वीडियो ने चलकर देखा तो वह बहुत खुश हुए कि पूजा इतना अच्छा कार्य कर रही है। उसको शाबाशी दी और कहा कि, "बिटिया! चिन्ता न करें और मैं इस कार्य के बारे में अवश्य अपने पंचायती अधिकारियों से बात करूँगा। पूजा को सामूहिक केंद्र खोलने के लिए धनराशि प्राप्त कर दी, जिसमें गरीब बच्चों को शिक्षा देकर कामयाब बना सके। पूजा के माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए। सभी लड़के-लड़कियाँ केन्द्र में कुछ न कुछ नया सीखने लगे। पूजा अपनी पढ़ाई के साथ-साथ केन्द्र पर चित्रकार रुचिपूर्ण कार्य कर रही थी ताकि बच्चे बड़े होकर हस्तकला में निपुण हों और अपनी जीवनकोपार्जन के लिए तैयार हो जायें। एक साल के बाद वीडियो साहब दोबारा आये और उन्होंने गाँव की तस्वीर को बदलते हुए देखा। तब पूजा को बहुत शाबाशी दी और सभी के सामने कहा कि, "नई सोच के साथ जीना पूजा ने ही सिखाया है। आज इस गाँव की तकदीर को बदलते मैंने देखा है। इस बिटिया को पुरस्कार मिलना जरूरी है। ऐसा ही हुआ। पूजा बारहवीं में पास हुई उसके बाद बी० टी० सी० कर विद्यालय में अध्यापक की नौकरी करने लगी।
माता-पिता का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने अपनी बच्ची की लगन और मेहनत को सराहन की, "आज तुमने मेरा सिर ऊँचा कर दिया। मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उसके बावजूद भी आप कामयाब हुई। उन्होंने पूजा को गले लगा लिया और कहा कि, "आज के जमाने में बेटियाँ किसी से काम नहीं हैं। आज नये जमाने में नयी सोच के साथ जीना चाहिए।" पूजा ने कहा, "पिताजी! हम गाँव के लोग गरीब होते हैं। सुख-सुविधा न होने के कारण हम अपनी हस्तकला को देख नहीं पाते, इसलिए मैंने यह कार्य किया
ताकि कोई हमको गाँव वाला न कहे।" ऐसा सुनकर सभी प्रसन्न हुए और पूजा को शाबाशी दी।
संस्कार सन्देश -
हमें अपने परिवेश में हस्तकला और हुनर की पहचान करते हुए सभी को मौका देना चाहिए ताकि नयी सोच के साथ जीना सीख सके और सभी आगे बढ़ सके।
कहानीकार-
पुष्पा शर्मा (शि०मि०)
पी० एस० राजीपुर, अकराबाद, अलीगढ़ (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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