164/2024, बाल कहानी-12 सितम्बर
बाल कहानी - रक्षा
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बहुत जोर की बारिश हो रही थी। चारों ओर नदी और नाले उफान पर थे। बारिश की बड़ी-बड़ी बूँदें टप-टप की जोरदार आवाजें कर रही थीं। ऐसे में बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल था। लोग अपने-अपने घरों, छायादानों में बैठकर गरजते-चमकते बादलों का ताँडव और बारिश का कहर टकटकी लगाए देख रहे थे। कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा। जब बारिश धीमी हुई तो मुहल्ले के सभी बच्चे बारिश में नहाने निकल पड़े। उनके घरवालों ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, किन्तु वे न रुके। बच्चे बारिश की बरसती-उछलती बूँदों में जाकर नहाने और उछलने लगे। वे तालियाँ बजाकर जोर-जोर से किलकारियाँ भरते और एक-दूसरे के ऊपर गिरते तथा बारिश के पानी में लोटते। बालपन की ये निश्छल शरारतें देखते ही बनती थीं।
तभी अचानक सभी बच्चों को नाले में एक छोटा-सा कुत्ते का बच्चा बहते हुए दिखाई दिया। सभी बच्चे चिल्लाये-, "पिल्ला..पिल्ला..।" कुछ बच्चे बोले-, "कहाँ हैं पिल्ला?" एक ने कहा-, "देखो, ये है..नाले में बहकर आ रहा है। कई-कई चिल्ला रहा है। हमें इसे बचाना चाहिए, बरना यह मर जायेगा।" सभी बच्चे उसे बचाने दौड़ पड़े, किन्तु पानी के तेज बहाव के कारण उसे पकड़ न सके। सभी बच्चे उसके आगे दौड़े। तभी कुछ बच्चे उसके आगे नाले में कूद पड़े और उसे पकड़कर बाहर कर दिया। कुछ बच्चों ने उसे उठाकर एक ओर सुरक्षित जगह पर रख दिया। कुछ समय बाद वह सामान्य हो गया। वहाँ उपस्थित लोगों ने उन बच्चों की सराहना की। इस तरह बच्चों की सूझ-बूझ और तत्परता से एक जीव की जान बच गयी।
संस्कार सन्देश-
हमें हमेशा जीवों की रक्षा करनी चाहिए। यही हमारा परम धर्म है।
लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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