167/2024, बाल कहानी -14 सितम्बर


बाल कहानी- नीङ परजीविता
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एक सुन्दर सा बगीचा था। जहाँ मनमोहक फूल तथा स्वादिष्ट फलों के वृक्ष थे। बगीचे में आम के पेङ पर कौवे का घोंसला था, जिसमें कौवा अपने परिवार के साथ राजी-खुशी से रहता था। वहीं थोङी दूर पर कोयल का एक जोङा भी रहता था। जो भी बगीचे में घूमने-टहलने आता, कोयल की मीठी बोली सुनकर भाव-विभोर हो उठता और कौवे की कर्कश आवाज सुनकर उसे बुरा-भला कहता। कौवा दूर-दूर तक अपने भोजन की तलाश में जाता और अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता। कोयल के घर खुशखबरी आयी। चालाक और आलसी कोयल को अपना घोंसला तो नहीं बनाना था लेकिन बच्चे तो पालना ही था इसलिए इधर नर कोयल ने कौवे से अनावश्यक लङाई की। उधर मादा कोयल ने चुपके से अपने अण्डे लाकर कौवे के घोंसले में डाल दिए और कौवे के अण्डों को उठाकर बाहर फेंक दिया और खुद निश्चिन्त होकर इस शाखा से उस शाखा तक घूमने, उङने लगी। कौवा कोयल के अण्डों को अपना समझकर पालने लगे। जब अण्डे फूटकर बच्चे बाहर आये, कौवा फिर भी न जान पाया। बच्चों के पंख आ गये, तो वे भी अपने परिवार के साथ जाकर मीठी तान सुनाने लगे। कौवा ठगा-सा रह गया। उसको मालूम भी न चला कि जिसे वह पाल रहा था, असल में वे कोयल के बच्चे थे।

संस्कार सन्देश -
ये दुनिया भी ऐसी ही है, जरा सी लापरवाही या कमजोरी में आपका फायदा उठाने से पीछे नहीं हटती। सावधान रहें, सतर्क रहें। 

लेखिका-
सरिता तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला,
 मसौधा (अयोध्या)

कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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