175/2024, बाल कहानी- 27 सितम्बर
बाल कहानी - शिक्षा का महत्व
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एक सुदूर गाँव में विद्यालय था। वहाँ के लोग ज्यादातर खेतिहर थे। सभी गाँव के लोग खेती-किसानी करते और बच्चों को भी खेती के काम मे ही लगाये रहते थे।
उस गाँव की सालों से माँग थी कि गाँव में विद्यालय हो। माँग बढ़ी तो सरकार ने विद्यालय खोलने का आदेश दिया। वहाँ कुछ महीनों में विद्यालय बनकर तैयार हो गया।
नये अध्यापकों का भी उस गांव में आगमन हुआ।
शिक्षा के प्रति ज्यादा रुचि न होने के कारण अध्यापकों ने गाँव में जागरूकता अभियान चलाया।
समय-समय पर अध्यापक-अविभावक मीटिंग हुई। धीरे-धीरे गाँव बालों को शिक्षा का महत्व समझ आया और विद्यालय में छात्र नियमित उपस्थिति देने लगे, जिससे विद्यालय का माहौल मनोरम हो गया। धीरे-धीरे नियमित छात्रों को देखकर अन्य छात्र भी रोज विद्यालय आने लगे। सभी अच्छे से पढ़ाई करने लगे।
एक समय ऐसा आया कि गाँव के सम्पूर्ण छात्रों का दाखिला विद्यालय में हो गया और अच्छे से पढ़ाई होने लगी। बच्चे नयी-नयी चीजें सीखकर घर जाकर अपने माता-पिता को को बताते, जिससे माता-पिता खुश होते और रोज बच्चों को विद्यालय छोड़ने जाते। स्कूल के हर कार्यक्रम में सहभागिता करते कुछ साल बाद जब बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने का समय आया तो माता-पिता के मन मे संशय हुआ।
तब विद्यालय के अध्यापकों ने माता-पिता को समझाया और शिक्षा का महत्व भी बताया। तब जाकर माता-पिता उन्हें बाहर भेजने के लिए तैयार हुए।
आगे चलकर वही छात्र पढ़-लिखकर बड़े-बड़े पदों पर आसीन हुए। इससे पूरे गाँव वालों को प्रेरणा मिली और अब पूरा गाँव शिक्षा को लेकर प्रतिबद्ध हो गया।
संस्कार सन्देश -
शिक्षा हमें जीवन जीने के मायने सिखाती है। परिवार एवं समाज का शिक्षा के प्रति ध्यान आकर्षण हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
कहानीकार-
धर्मेंद्र शर्मा (स०अ०)
कन्या० प्रा० वि० टोडी फतेहपुर गुरसराय (झाँसी)
कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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