168/2024, बाल कहानी-19 सितम्बर


बाल कहानी - बटुआ
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एक दिन भाई-बहन ऋषभ और सुलोचना बाजार जाते हैं। भाई थोड़ा शैतान और लापरवाह किस्म का था, जबकि सुलोचना बड़ी होने के कारण बहुत ही समझदार थी। वह हर काम को समझदारी से करते हुए सदैव होशियारी का परिचय देती थी। एक दिन गाँव में थोड़ी दूर पर बहुत बड़ा मेला लगा था। दोनों भाई-बहन मेले में तैयार होकर चल देते हैं। सुलोचना एक छोटा-सा बदुआ लेकर मेले में अपनी बुआ के साथ चल देती है, वहीं उसका भाई ऋषभ सोचता है कि, "दीदी को तो कुछ ध्यान ही नहीं है। अब हम मेले में जायेंगे तो बहुत सारे खिलौने भी तो मिलेंगे और खाने का सामान भी मिलेगा तो क्यों न मैं बड़ा-सा थैला अपने साथ रख लेता हूँ।" लेकिन सुलोचना कुछ भी अपने साथ लेकर के नहीं जाती है सिर्फ एक अपना छोटा-सा हाथ से बनाया हुआ बटुआ लेकर बुआ के साथ बाजार को चल देती है। दोनों बाजार पहुँचते हैं। ऋषभ मेले में इतने अच्छे-अच्छे घोड़े, हाथी और बहुत सुन्दर-सुन्दर खिलौने देखकर बहुत खुश होता है। वह सोचता है कि, "आज मैं बहुत सारे खिलौने खरीद लूँगा और अपने साथ पॉलिथीन तो लाया ही हूँ, उसी में सब भरकर घर ले चलूँगा और ऐसा करते हुए वह कम से कम पन्द्रह से बीस छोटे-छोटे खिलौने खरीद लेता है और अपनी पॉलिथीन में भर लेता है, तभी रास्ते में उसे कुछ खाने का सामान भी दिखता है तो वह लालच में वह भी सामान भर लेता है। इधर बहन सुलोचना कुछ खास नहीं लेती, बस! सिर्फ अपने लिए एक सुन्दर-सा दुपट्टा खरीदती है। दोनों लोग मेला खूब मन से घूमने के बाद घर के लिए चल देते हैं। 
रास्ते में अचानक बहुत तेज पानी बरसने लगता है। ऋषभ की पॉलिथीन फट जाती है। उसके सारे खिलौने जमीन में गिर जाते हैं। अब ऋषभ रोने लगता है तो बहन कहती है कि "भाई! तुम रोओ मत! मैं कुछ न कुछ करती हूँ।" भाई बोलता है कि, "तुम क्या करोगी? तुम्हारे पास तो खुद ही कुछ नहीं है। मेरे खिलौने इतने सारे! तुम हाथ में भी नहीं ले जा सकती। अब हम कैसे ले जायेंगे?" वह कहती है कि, "मैं सारे खिलौने मेरे बदुए में रख लेती हूँ।" ऋषभ उसकी मजाक बनाते हुए हँसता है और कहता है, "ही.. ही.. ही.. इतने सारे खिलौने और यह छोटा सा तुम्हारा बटुआ.. मजाक कर रही हो क्या दीदी?" तभी सुलोचना अपना बटुआ खोलती है और उसी के अन्दर से जादू से कहती है कि, "मेरे देखो! कितना बड़ा थैला है? जो उसने खुद बनाया था।" वह निकालती है और दिखाती है। अब ऋषभ बहुत खुश होता है और दीदी की होशियारी की तारीफ भी करता है। बुआ भी सुलोचना की इस होशियारी पर बहुत खुश होती है और तारीफ करती है और कहती है, "हमें पॉलिथीन का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि एक तो न तो वह मजबूत होती है और अगर हम उसे इधर-उधर फेंक देते हैं तो बेजुबान जानवर उसको खा सकते हैं और उनकी मृत्यु भी हो सकती है तो हमें सदैव अपने साथ बाजार जाते समय एक थैला लेकर के जाना चाहिए।" ऋषभ सब कुछ समझ चुका था।

#संस्कार_सन्देश -
हमें पाॅलीथीन के प्रयोग से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह जानवरों के लिए जानलेवा होती है। 

लेखिका
#अंजनी_अग्रवाल (स०अ०)
सरसौल (कानपुर नगर)

कहानी वाचन -
#नीलम_भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#नैतिक_प्रभात

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