ऋतुराज बसंत

आया मधुऋतु का त्योहार
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
       सब गायें मलहार।
पवन भी मन्द मन्द मुस्काये
गीत नव जीवन के सुनाए।
तरु भी कोमल-कोमल कलियों से
 करने लगे है श्रृंगार जिया का।
            छोड़ पुराने पत्तों को
            नव पत्रों ने जगह है पायी
और नूतन विकसित पुष्पों के संग हैं मुस्काये।
धानी रंग से धरती सजी है
परिधान बसंती ओढ़े।
        भानु भी मुदित है
         धरा के इस रूप से।
         उसमें भी गुनगुनाहट है आयी।
छोड़ के कोटर पंछी भी
खुले गगन में मस्ती से लहराये।
                रूप धारा का बदला है
             नव सौंदर्य नव सृजन से।
प्रकृति का अभिवादन कर
वसुंधरा का वंदन करो।
     छोड़ पुरानी असफलता को
   पुनः सफल होने का प्रयास करो।

रचयिता
सन्नू नेगी,
सहायक अध्यापक,
रा0 उ0 प्रा0 वि0 सिदोली,
विकास खण्ड-कर्णप्रयाग, 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।

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