हमको इतना सिखाती हो

कक्षा में बालक पूछ रहा
क्यों हमको इतना सिखाती हो?
व्यर्थ ही ये ऊर्जा हम बच्चों पर लगाती हो।
नित समझाती हो हमको,
नित बतलाती हो हमको,
कभी आकर क्यों तुम हमें इतना
ज्ञान दे जाती हो?
क्यों कराती कक्षा कार्य हमें,
क्यों गृहकार्य दे जाती हो।
हम छोटे छोटे बच्चों पर
इतना क्यों जुल्म ढहाती हो?
मैडम प्यार से झुक करके
बालक का सिर सहलाती है।
मैं निर्माता इस राष्ट्र की हूँ,
तुम्हें रोज बदलने आती हूँ।
मैं क्रोध नहीं करती तुम पर,
बस अनुशासन सिखलाती हूँ।
जुल्म सितम न करती तुम पर,
न बैर भाव सिखलाती हूँ।
मैं व्यापार नहीं करती,
झूठा व्यवहार नहीं करती।
मैं भावी देश की पीढ़ी को
राष्ट्र निर्माण सिखलाती हूँ।
मैं जीवन के काँटों को चुनकर,
राहें सरल बनाती हूँ।
देकर गृहकार्य तुमको मैं,
समय-नियोजन सिखलाती हूँ।
मैं अपने कर्तव्य जानती हूँ,
और कर्तव्यबोध सिखलाती हूँ।
वर्तमान की इस कठिन परीक्षा से,
मैं उज्जवल भविष्य बनाती हूँ।
बच्चा लिपट गया शिक्षक से,
रो-रो कर बोला अपनी मैडम से,
प्रकृति से बड़ी नरम हो तुम,
प्रभु करे और समृद्ध हो तुम।

रचयिता
नीतू चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अभयपुर (अंग्रेजी माध्यम),
विकास क्षेत्र-भोजीपुरा,
जनपद-बरेली।

Comments

  1. शानदार
    अद्भुत शब्द शब्द में जादू

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