पथिक

पथिक पथ है दुर्गम,
अवरोध हैं विरोध हैं,
करनी इसी की शोध है।
विघ्नों का यहाँ संगम,
किन्तु,
पथिक करना होगा संयम।
दृश्य देखोगे होंगे विहंगम।
सुरम्योद्यान, सरित तट भी,
मधुवन और विशाल वट भी।
कभी आएगी शाम,
कभी होगा नया सबेरा।
कभी तपती धूप होगी,
बरसात भी होगी।
झंझावात के झकोरे होंगे,
दीप जिससे बुझते होंगे।
अंधेरा फिर भटकाएगा,
हमें निराशा में उलझाएगा।
पर! सुनो ऐ पथिक।
यह जिन्दगी का रास्ता है।
हमारा जिससे वास्ता है।
हम न होंगे कभी उदास,
निराश और हताश।
भरेंगे मन अन्तर में आस।
मंजिल की ओर बढ़ते,
कोशिश निरन्तर करते।
पाने अपना इष्ट, अभीष्ट।
चलते रहेंगे पथ निर्दिष्ट।
हमें भी तुम्हें भी सबको भी,
अनवरत चलना है।
कभी नहीं रुकना है।
अपने जीवन का पथ।
पथिक चलते रहो,
बढ़ते रहो, बढ़ते रहो।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रभारी अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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