वसन्त ऋतु

शीत का जब होता अवसान।
पतझड़ का होने लगता आगाज।
पुष्पान्वित लताएँ करतीं मुस्कान।
भ्रमर भ्रमण कर गाते मधुर गान॥
     कोयल अपनी मधुर वाणी से।
     आकृष्ट करती सबका ध्यान।
      मंत्रमुग्ध हो सुन उसकी गान।
     सब जन करने लगते सम्मान।
दिख रहे कुसुमित किसलय।
मधुर कलरव विहग का लय।
कितना सुहाना है यह काल।
धारित की है धरा जयमाल॥
      पुराने पत्ते गिर रहे विटप से।
      खिलतीं नव आशाएँ मन में।
      ओस हटे, नीला हुआ गगन।
     फूलों से महकने लगा चमन॥

रचयिता
रवीन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बसवार,
विकास क्षेत्र-परतावल,
जनपद-महराजगंज,उ०प्र०।


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