संदेश ईश्वर का

ईश्वर कहता है, हे मानव! बसा मुझे तू अपने मन में
क्या भरा इस मन में क्यों मुझे बैठा दिया दूर कहीं मन्दिर में
पहले खुद को पहचान, किस बात का तुझे अभिमान
छोड दे सारी दुनियादारी पहले तू मानवता पहचान
संस्कारों का गेरू लेकर, मन मन्दिर को सजा ले
त्याग, समर्पण की ध्वजा पकड़ हाथों में तू फहरा ले
आदर्शों का ईंधन लेकर, अखण्ड ज्ञान ज्योति जला ले
जीवन मूल्यों की सुगन्ध लेकर हृदय अपना महका ले
अचेतन पत्थर गारे के घर में कैसे मैं रह पाऊँगा
अपना हृदय सौंप मुझे तभी जिन्दा रह पाऊँगा
कभी समाज में अपने कर्मों का असर भी समझा कर
कभी अकेले में आईना साफ कर और गौर से तू देखा कर
जब तक तू स्वयं जागकर इसान नहीं बन जाएगा
 तब तक तेरा कहाँ मुझसे साक्षात्कार हो पाएगा ……..?

रचयिता
रमेश चंद्र जोशी(सत्यम जोशी),
सहायक अध्यापक, 
रा0 प्रा0 वि0 बैकोट,
विकास खण्ड - धारचूला,
जनपद - पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड।

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