सुनो बंधुवर जीवन है

कभी-कभी काँटों का वन है,
और कभी ये मधुवन है।
गिरना और सँभलना ही तो,
सुनो बंधुवर जीवन है।।

सुधा कभी ये बन जाता है,
और कभी विष का प्याला।
गंगाजल सा पावन बनता,
और कभी जैसे हाला।।

अंगारों सा कभी दहकता,
और कभी ये चंदन है।
गिरना और सँभलना ही तो,
सुनो बंधुवर जीवन है।।

जीवन को कोई ना समझा,
ये तो एक पहेली है।
कभी-कभी तो यूँ लगता ज्यों,
बिछड़ी हुई सहेली है।।

कभी सुलझ जाए इक पल में,
और कभी ये उलझन है।
गिरना और सँभलना ही तो,
सुनो बंधुवर जीवन है।।

दुख की धूप कभी आती है,
और कभी सुख की छाया।
पुष्प पल्लवित होते प्यारे,
और कभी पतझड़ छाया।।

काँटों संग सुमन भी खिलते,
ऐसा प्यारा उपवन है।
गिरना और सँभलना ही तो,
सुनो बंधुवर जीवन है।।

रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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