मंजिल

खुद की पहचान गर हो बनाना..
कोई बहाना फिर तुम न बनाना..
कोशिश तुम करते ही रहना..
बिन कोशिश कर हार न जाना..
कर इरादा तुझे मंजिल है पाना..
ठोकरों से तुम मत घबराना..
खुद की पहचान गर हो बनाना..
कोई बहाना फिर तुम न बनाना..
सीढ़ियों का मत ले सहारा..
सीढ़ियों की मंजिल बस छत तक जाना..
तेरी मंजिल से तू नहीं अन्जाना..
रास्ता तुझे खुद ही है बनाना..
क्यों यूँ बैठ तू देख रहा जमाना..
चल उठ खोल पंखों को यूँ फड़फड़ाना..
तूझे देखने फिर आये सारा जमाना..
खुद की पहचान गर हो बनाना..
कोई बहाना फिर तुम न बनाना..

रचयिता
स्वाती सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रवांसी,
विकास खण्ड-परसेंडी,
जनपद-सीतापुर।

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