कवि! लिख दे

कवि! लिख ऐसी अब दे बानी।
छलके अश्रु नयन भर पानी।

गीत प्यार के गाते अनगिन,
तू लिख जिनके सूने हैं दिन।
बरस रही हैं आँखें प्रतिपल,
अपनेपन की आशा निर्बल।
बूढ़ी माँ की बोझिल सी आँखें,
निर्वासित जीवन की जो आहें।
लिप्त स्वार्थ में मानव प्राणी,
भटक रही क्यों दिशा जवानी?

कवि! लिख ऐसी अब दे बानी।

कुटिल चाल के चौसर चालें,
मानवता पर कुछ बादल काले।
क्रन्दन पीड़ा निबल निरन्तर,
उजले वसन श्याम हैं अन्तर।
विद्रूप हुए हैं कितने ही चेहरे,
राज छिपे हैं  लिख दो गहरे।
बेबस माँ की  विवश कहानी।
एक पिता की  आस पुरानी।

कवि! लिख ऐसी अब दे बानी।

लोभ स्वार्थ का छद्म छलावा,
कहाँ-कहाँ पर है नेग चढ़ावा।
श्रम की पूँजी  कुछ सूनी रातें,
रजकण की कुछ अपनी बातें।
भूखे विकल विवश कुछ कैसे?
अभिनव शोषक पलते वैसे।
मानव की हर लिखो कहानी,
पीर लिखो तुम जो अनजानी।

कवि! लिख ऐसी अब दे बानी।

सिंगार नहीं अंगार लिखो तुम,
नारी का शुचि प्यार लिखो तुम।
वीरों का अब यशगान सुना दो
उनकी माँ का सम्मान बढ़ा दो।
कैसे एक विधवा बच्चे पाले?
अँधियारे में कुछ करो उजाले।
ममता की जो करुण कहानी,
सुनकर छलके दृग में पानी।

कवि! लिख ऐसी अब दे बानी।।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रभारी अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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