बेटियाँ

माँ -बाप की शान होती हैं बेटियाँ,
घर के आँगन की जान होती हैं बेटियाँ।

बेटी नहीं तो वो घर, घर नहीं मकान है,
मकानों को घर बनाती हैं बेटियाँ।

दर्द सहकर सबको खुश रखती हैं बेटियाँ
मदर टेरेसा सी महान् होती हैं बेटियाँ

कब सुबह होती है, कब शाम होती है, इनको क्या पता,
पारिवारिक संस्कारों की पहचान होती हैं बेटियाँ।

चुप रहकर सब कुछ सहती हैं बेटियाँ,
आखिर क्यूँ इतनी महान् होती हैं बेटियाँ

सोचो गर कल बेटी न होगी,
सोचो घर में उसकी किलकारी न होगी,

ऐसे सूने घर पर वीरानी छा जाएगी,
अंधेरे घर का प्रकाश होती हैं बेटियाँ।।

रचयिता
डॉ0 रचना सिंह, 
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कटरी पीपरखेड़ा
विकास खण्ड-सिकन्दरपुर कर्ण, 
जनपद-उन्नाव।

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