बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

बेटी, बेटी मत पुकारो,
दुश्मन तुम बन जाते हो,
पैदा होने से पहले ही,
उसका गला दबाते हो।।

साक्षर बेटी, पढ़े बेटी का,
तुम प्रचार खूब कराते हो,
स्कूल के नाम पर उसको,
घरेलू कार्यों में उलझाते हो।।

बेटी की शक्ति को देखो,
पुरूष से कंधा मिलाती है,
आज खडी अंगारों पर,
फिर भी हँसती जाती है।।

अगर बेटी न होती तो,
ये संसार कैसे चलता,
पुरुष अधूरा ही रह जाता,
फिर ब्याह किससे करता।।

एक बेटी ही तो हैं जो,
शिक्षा की अलख जगाती है,
स्वयं पढने के बावजूद भी
 नौनिहालों को पढ़ाती है।।

अपनी जिम्मेदारियों को,
हँसकर गले लगाती है,
हर बाधाओं में रहकर भी,
घर, परिवार सम्भालती है।।

जिस दिन बेटी, बेटों में माँ,
तुम फर्क नहीं कर पाओगी,
उस दिन तुम संसार में,
एक सच्ची माँ कहलाओगी।।

रचयिता
सुधीर डोबरियाल,
सहायक अध्यापक,
रा. प्रा. वि.-मरगाँव,
विकास क्षेत्र-कल्जीखाल,
जनपद-पौड़ी गढवाल,
उत्तराखण्ड।

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