गौरैया और बचपन
प्यारा सा था बचपना, साथी थे अनमोल।
नहीं किसी से बैरता, थे प्रेम के बोल।।
बहुत मुझे तड़पा गई, लड़कपने की याद।
आई सारी याद अब, बीते सालों बाद।।
लगता प्यारा था मुझे, गौरैया का साथ।
सदा खिलाती थी उसे, गेहूँ अपने हाथ।।
सुध-बुध अपनी थी नहीं, सदा खेलते खेल।
भेदभाव को छोड़कर, था सबसे ही मेल।।
फुदक-फुदक कर कूदती, जब आती थी द्वार।
दाना चुग कर ले चली, अपने घर संसार।।
घास फूस का घोंसला, थे प्यारे से बाल।(बच्चे)
माता को जब देखते, खूब बजाते ताल।।
चित्रण प्यारा प्रेम का, कैसे करूँ बखान।
मानवता भी सोचती, बच्ची बड़ी महान।।
लालच माया मोह से, रहित श्रेष्ठ है भाव।
वर्तमान के दौर में, दिखता सदा अभाव।।
गौरैया दिखती नहीं, पक्षी खोजें आज।
हुई लोप सब जातियाँ, ढूँढे सभी समाज।।
उत्कंठा से भर गया, मंच दिखा यह चित्र।
पक्षी की साथी बनी, बच्ची प्यारी मित्र।।
रचयिता
गीता देवी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,
विकास खण्ड- बिधूना,
जनपद- औरैया।
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