होली का एक मुशायरा
देखो, आई होली चलो,
होली का एक मुशायरा कर डालें,
एक दूसरे पर सभी,
शेर और शायरी के रंग उछालें।।
यादों में बसे कुछ पुराने,
किस्से-कहानियों की गाँठें खोलें।
लेकर के शब्दों के पतीले,
कविताओं की ठण्डाई घोलें।।
प्रेम और सौहार्द के शक्करपारे पगा लें।
चलो होली का एक मुशायरा कर डालें।।
भून लें कुछ पापड़ शायरियों के,
अल्फ़ाज़ों की पहले चढ़ा दें कढ़ाही।
दीदार ए यार के दही भल्ले ले लें,
लगा दें अपनी आहों की मलाई।।
गरम-गरम गुझियों की गजलें कह डालें।
चलो होली का एक मुशायरा कर डालें।।
पुरानी रंजिशें जलाकर होली में,
हौले से मारें प्रेम के गुब्बारे।
रसिया-रंगों को लवों से उलीचें,
खोलें फ़लसफ़ा के फव्वारे।।
आज फगुआ के गीतों का गुलाल लगा लें।
चलो होली का एक मुशायरा कर डालें।।
रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
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